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पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-द्वितीय उद्देशक - पांचवां उपयोग द्वार
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प्रकार स्पर्शनेन्द्रियनिवर्तना काल तक कहना चाहिए। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिकों की इन्द्रियनितना के काल के विषय में कहना चाहिए।
• विवेचन - बाह्याभ्यन्तर रूप निर्वृत्ति-आकार की रचना को निर्वर्तना कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में पांच प्रकार की इन्द्रिय-निर्वर्तना का कथन करते हुए प्रत्येक इन्द्रिय के निर्वर्तना के समयों की प्ररूपणा की गयी है।
. चौथा लब्धि द्वार कइविहा णं भंते! इंदियलद्धी पण्णत्ता?
गोयमा! पंचविहा इंदियलद्धी पण्णत्ता। तंजहा - सोइंदियलद्धी जाव फासिंदियलद्धी। एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं णवरं जस्स जइ इंदिया अस्थि तस्स तावइया भाणियव्वा ४।।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन्द्रियलब्धि कितने प्रकार की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! इन्द्रियलब्धि पांच प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार है - श्रोत्रेन्द्रियलब्धि यावत् स्पर्शेन्द्रियलब्धि। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक इन्द्रियलब्धि की प्ररूपणा करनी चाहिए। विशेषता यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतनी ही इन्द्रियलब्धि कहनी चाहिए। विवेचन - इन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम से जानने की शक्ति को इन्द्रिय लब्धि कहते हैं।
.. . पांचवां उपयोग द्वार कइविहा णं भंते! इंदियउवओगद्धा पण्णत्ता?
गोयमा! पंचविहा इंदियउवओगद्धा पण्णत्ता। तंजहा - सोइंदियउवओगद्धा जाव फासिंदियउवओगद्धा। एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं णवरं जस्स जइ इंदिया अत्थि०५॥४४७॥
कठिन शब्दार्थ - इंदियउवओगद्धा - इन्द्रिय उपयोगाद्धा-इन्द्रिय का उपयोग काल-जितने काल तक इन्द्रियाँ उपयोग युक्त होती है उतने काल को इन्द्रियोपयोगाद्धा कहते हैं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन्द्रियों के उपयोग का काल कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! इन्द्रियों का उपयोग काल पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - श्रोत्रेन्द्रिय-उपयोगकाल यावत् स्पर्शनेन्द्रिय-उपयोगकाल। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक के इन्द्रिय-उपयोगकाल के विषय में समझना चाहिए। विशेष यह है कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतने ही इन्द्रियोपयोगकाल कहने चाहिए।
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