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________________ पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-द्वितीय उद्देशक - पांचवां उपयोग द्वार ६१ प्रकार स्पर्शनेन्द्रियनिवर्तना काल तक कहना चाहिए। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिकों की इन्द्रियनितना के काल के विषय में कहना चाहिए। • विवेचन - बाह्याभ्यन्तर रूप निर्वृत्ति-आकार की रचना को निर्वर्तना कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में पांच प्रकार की इन्द्रिय-निर्वर्तना का कथन करते हुए प्रत्येक इन्द्रिय के निर्वर्तना के समयों की प्ररूपणा की गयी है। . चौथा लब्धि द्वार कइविहा णं भंते! इंदियलद्धी पण्णत्ता? गोयमा! पंचविहा इंदियलद्धी पण्णत्ता। तंजहा - सोइंदियलद्धी जाव फासिंदियलद्धी। एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं णवरं जस्स जइ इंदिया अस्थि तस्स तावइया भाणियव्वा ४।। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन्द्रियलब्धि कितने प्रकार की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! इन्द्रियलब्धि पांच प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार है - श्रोत्रेन्द्रियलब्धि यावत् स्पर्शेन्द्रियलब्धि। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक इन्द्रियलब्धि की प्ररूपणा करनी चाहिए। विशेषता यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतनी ही इन्द्रियलब्धि कहनी चाहिए। विवेचन - इन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम से जानने की शक्ति को इन्द्रिय लब्धि कहते हैं। .. . पांचवां उपयोग द्वार कइविहा णं भंते! इंदियउवओगद्धा पण्णत्ता? गोयमा! पंचविहा इंदियउवओगद्धा पण्णत्ता। तंजहा - सोइंदियउवओगद्धा जाव फासिंदियउवओगद्धा। एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं णवरं जस्स जइ इंदिया अत्थि०५॥४४७॥ कठिन शब्दार्थ - इंदियउवओगद्धा - इन्द्रिय उपयोगाद्धा-इन्द्रिय का उपयोग काल-जितने काल तक इन्द्रियाँ उपयोग युक्त होती है उतने काल को इन्द्रियोपयोगाद्धा कहते हैं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन्द्रियों के उपयोग का काल कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! इन्द्रियों का उपयोग काल पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - श्रोत्रेन्द्रिय-उपयोगकाल यावत् स्पर्शनेन्द्रिय-उपयोगकाल। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक के इन्द्रिय-उपयोगकाल के विषय में समझना चाहिए। विशेष यह है कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतने ही इन्द्रियोपयोगकाल कहने चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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