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प्रज्ञापना सूत्र
गोयमा! पंचविहे इंदिओवचए पण्णत्ते। तंजहा-सोइंदियउवचए जाव फासिंदियउवचए, एवं जाव वेमाणियाणं। जस्स जइ इंदिया तस्स तइविहो चेव इंदियउवचओ भाणियव्वो १।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के इन्द्रियोपचय पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - श्रोत्रेन्द्रियोपचय यावत् स्पर्शनेन्द्रियोपचय। इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर यावत् वैमानिकों के इन्द्रियोपचय के विषय में कहना चाहिए। जिसके जितनी इन्द्रियाँ होती हैं, उसके उतने ही प्रकार का इन्द्रियोपचय कहना चाहिए। - विवेचन - इन्द्रिय पद के इस दूसरे उद्देशक में उपरोक्त दो गाथाओं में वर्णित बारह द्वारों के . माध्यम से इन्द्रिय विषयक प्ररूपणा की गयी है। प्रथम द्वार में पांच प्रकार का इन्द्रियोपचय कहा गया है। इन्द्रियों के योग्य पुद्गलों के संग्रह को इन्द्रियोपचय कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में चौबीस दण्डकों में पाए जाने वाले इन्द्रियोपचय का कथन किया गया है।
. दूसरा-तीसरा निवर्तना द्वार कइविहा णं भंते! इंदियणिव्वत्तणा पण्णत्ता? . गोयमा! पंचविहा इंदियणिव्वत्तणा पण्णत्ता। तंजहा - सोइंदियणिव्वत्तणा जाव फासिंदियणिव्वत्तणा। एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं, णवरं जस्स जइ इंदिया अत्थि०२॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन्द्रियनिर्वर्तना कितने प्रकार की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! इन्द्रियनिर्वर्तना पांच प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार है - श्रोत्रेन्द्रियनिर्वर्तना यावत् स्पर्शनेन्द्रियनिर्वर्तना। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक निर्वर्तना विषयक प्ररूपणा कर देनी चाहिए। विशेषता यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ होती हैं, उसकी उतनी ही इन्द्रियनिर्वर्तना कहनी चाहिए।
सोइंदियणिव्वत्तणा णं भंते! कइसमइया पण्णत्ता?
गोयमा! असंखिजइसमइया अंतोमुहुत्तिया पण्णत्ता, एवं जाव फासिंदियणिव्वत्तणा। एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ३।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! श्रोत्रेन्द्रियनिर्वर्तना कितने समय की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! श्रोत्रेन्द्रियनिर्वर्तना असंख्यात समयों के अन्तर्मुहूर्त की कही गयी है। इसी
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