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________________ पण्णरसमं इंदियपयं-बीओ उद्देसो पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-द्वितीय उद्देशक . बारह द्वार इंदियउवचय १ णिव्वत्तणा २ य समया भवे असंखिज्जा ३। लद्धी ४ उवओगद्धा ५ अप्पाबहुए विसेसाहिया ६॥ ओगाहणा ७ अवाए ८ ईहा ९ तह वंजणोग्गहे १० चेव। दविदिय ११ भाविंदिय १२ तीया बद्धा पुरेक्खडिया॥ कठिन शब्दार्थ - इंदिय उवचय - इन्द्रियोपचय, णिव्वत्तणा - निर्वर्तना, लद्धी - लब्धि, उवओगद्धा - उपयोग काल, ओगाहणा - अवग्रह, अवाए - अवाय (अपाय), वंजणोग्गहे - 'व्यंजनावग्रह, तीया - अतीत, पुरेक्खडिया - पुरस्कृत। भावार्थ - १. इन्द्रियोपचय २. इन्द्रिय-निर्वर्तना, ३. निर्वर्तना के असंख्यात समय ४. लब्धि ५. उपयोगकाल ६. अल्पबहुत्व में विशेषाधिक उपयोग काल ७. अवग्रह ८. अवाय-अपाय, ९. ईहा तथा १०. व्यंजनावग्रह और. अर्थावग्रह ११. अतीत बद्ध पुरस्कृत (आगे होने वाली) द्रव्येन्द्रिय १२. भावेन्द्रिय। इस प्रकार दूसरे उद्देशक में बारह द्वारों के माध्यम से इन्द्रियविषयक अर्थाधिकार प्रतिपादित किया गया है। प्रथम इन्द्रियोपचय द्वार कइविहे णं भंते! इंदियउवचए पण्णत्ते ? गोयमा! पंचविहे इंदियउवचए पण्णत्ते। तंजहा - सोइंदियउवचए, चक्खिदियउवचए, घाणिंदियउवचए, जिभिदियउवचए, फासिंदियउवचए। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का कहा गया है ? . उत्तर - हे गौतम! इन्द्रियोपचय पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - १. श्रोत्रेन्द्रियोपचय २. चक्षुरिन्द्रियोपचय ३. घ्राणेन्द्रियोपचय ४. जिह्वेन्द्रियोपचय और ५. स्पर्शनेन्द्रियोपचय। णेरइयाणं भंते! कइविहे इंदिओवचए पण्णत्ते? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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