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________________ प्रज्ञापना सूत्र अलोक एक अजीवद्रव्य का देश है, अगुरुलघु है, अनन्त अगुरुलघु गुणों से संयुक्त है, सर्वाकाश के अनन्तवें भाग कम है। विवेचन - अलोक आकाशास्तिकाय के देश और प्रदेशों से स्पृष्ट है। शेष चौदह बोलों (१. धर्मास्तिकाय २. धर्मास्तिकाय का देश ३. धर्मास्तिकाय का प्रदेश ४. अधर्मास्तिकाय ५. अधर्मास्तिकाय का देश ६. अधर्मास्तिकाय का प्रदेश ७. आकाशास्तिकाय ८. पृथ्वीकाय ९. अप्काय १०. तेजस्काय ११. वायुकाय १२. वनस्पतिकाय १३. त्रसकाय १४. काल) से स्पृष्ट नहीं है। अलोक अजीव द्रव्य का देश यानी आकाशास्तिकाय का देश है, अगुरुलघु स्वभाव वाला है अनन्त अगुरुलघु पर्यायों से युक्त है और सारे आकाश के अनन्तवें भाग कम है। यहाँ पर अलोक में जो अगुरुलघु पर्यायों का निषेध किया है वह अन्य द्रव्यों की पर्यायों की अपेक्षा समझना चाहिये। क्योंकि अलोक में अन्य द्रव्य तो है ही नहीं। आगमकारों की वर्णन शैली ही इस प्रकार की है कि - पहले आधेय द्रव्यों का वर्णन करके बाद में आधार द्रव्यों का वर्णन करते हैं 'जैसा कि द्रव्य आदि के वर्णन में भी जीव अजीव आदि आधेय द्रव्यों का निषेध करके फिर आगे अजीव द्रव्य देश के रूप में अलोक को बताया है। इसी प्रकार यहाँ पर भी आधेय द्रव्यों के अगुरुलंघु पर्यन्त पर्यायों का निषेध करके अलोक को एक अजीव द्रव्य देश रूप और अनन्त अगुरुलघु गुणों से संयुक्त बताया है। अलोक रूप अजीव द्रव्य का देश स्वयं अगुरुलघु है तथा उसमें (एक-एक प्रदेशों पर) अनन्त अनन्त अगुरु लघु गुण (पर्याय) है। अलोक में दूसरा काई जीव द्रव्य का देश नहीं है वह स्वयं अजीव द्रव्य का देश है। अलोक में धर्मास्तिकाय एवं अधर्मास्तिकाय तथा इनके देश प्रदेशों का स्पर्श नहीं किया है क्योंकि यहाँ सर्व अवगाहित करके स्पर्श की पृच्छा है। ॥पण्णवणाए भगवईए पण्णरसमस्स इंदियपयस्स पढमो उद्देसो समत्तो॥ ॥ प्रज्ञापना सूत्र के पन्द्रहवें इन्द्रिय पद का प्रथम उद्देशक समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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