________________
पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-प्रथम उद्देशक - आकाश थिग्गल द्वार
५३
२२. आकाश थिग्गल द्वार आगास थिग्गले णं भंते! किंणा फुडे ? कइहिं वा काएहिं फुडे? किं धम्मत्थिकाएणं फुडे, धम्मत्थिकायस्स देसेणं फुडे, धम्मत्थिकायस्स पएसेहिं फुडे? एवं अधम्मत्थिकाएणं, आगासत्थिकाएणं एएणं भेएणं जाव पुढवीकाइएणं फुडे जाव तसकाएणं, अद्धासमएणं फुडे?
गोयमा! धम्मत्थिकारणं फुडे, णो धम्मत्थिकायस्स देसेणं फुडे, धम्मत्थिकायस्स . पएसेहिं फुडे, एवं अधम्मत्थिकाएण वि, णो आगासस्थिकारणं फुडे, आगासत्थिकायस्स देसेणं फुडे, आगासत्थिकायस्स पएसेहिं फुडे जाव वणस्सइकाएणं फुडे, तसकाएणं सिय फुडे, सिय णो फुडे।अद्धासमएणं देसे फुडे, देसे णो फुडे।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! आकाश-थिग्गल आकाशास्तिकाय का एक विभाग अर्थात् लोक किससे स्पृष्ट है ?, कितने कायों से स्पृष्ट है ? क्या वह धर्मास्तिकाय से स्पृष्ट है, या धर्मास्तिकाय के । देश से स्पृष्ट है, अथवा धर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है ? इसी प्रकार क्या वह अधर्मास्तिकाय से तथा अधर्मास्तिकाय के देश से या प्रदेशों से स्पृष्ट है? अथवा वह आकाशास्तिकाय से या उसके देश से या प्रदेशों से स्पष्ट है ? इन्हीं भेदों के अनुसार क्या वह पुद्गलास्तिकाय से, जीवास्तिकाय से तथा पृथ्वीकाय आदि से लेकर यावत् वनस्पतिकाय तथा त्रसकाय से स्पृष्ट है ? अथवा क्या वह अद्धासमय से स्पृष्ट है?
उत्तर - हे गौतम! वह आकाशथिग्गल (लोक) धर्मास्तिकाय से स्पृष्ट है, धर्मास्तिकाय के देश से स्पृष्ट नहीं है, धर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय से भी स्पृष्ट है, अधर्मास्तिकाय के देश से स्पृष्ट नहीं है, अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है। आकाशास्तिकाय से स्पृष्ट नहीं है, आकाशास्तिकाय के देश से स्पृष्ट है तथा आकाशास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है तथा पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय एवं पृथ्वीकाय आदि से लेकर यावत् वनस्पतिकाय से स्पृष्ट है, त्रसकाय से कथंचित् स्पृष्ट है और कथंचित् स्पृष्ट नहीं है, अद्धा-समय (काल द्रव्य) से देश से स्पृष्ट है तथा देश से स्पृष्ट नहीं है। . विवेचन - शंका - लोक को 'आकाश थिग्गल' कहने का क्या कारण है ?
समाधान - सम्पूर्ण आकाश एक विस्तृत पट (कपड़ा) के समान है। उस विस्तृत पट के बीच में लोक एक थिग्गल (पैबन्द-कपड़े के टुकड़े की कारी) की तरह प्रतीत होता है। अतः लोक को
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org