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- प्रज्ञापना सूत्र
महावीर जैन विद्यालय बम्बई से प्रकाशित ‘पन्नवणा सुत्तं' के प्रथम भाग के पृष्ठ २३७ -२३८ में नीचे टिप्पणी में किया गया है। जिज्ञासुओं के लिए वह द्रष्टव्य है।
२०. कंबल द्वार कंबलसाडए णं भंते! आवेढिय परिवेढिए समाणे जावइयं उवासंतरं फुसित्ता णं चिट्ठइ विरल्लिए वि समाणे तावइयं चेव उवासंतरं फुसित्ता णं चिट्ठइ? .
हंता गोयमा! कंबलसाडए णं आवेढिय परिवेढिए समाणे जावइयं तं चेव।
कठिन शब्दार्थ - कंबलसाडए - कम्बल शाटक, आवेढिय परिवेढिए - आवेष्टित-परिवेष्टित, उवासंतरं - अवकाशान्तर को। ..
___ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कम्बल रूप शाटक (चादर या साड़ी) आवेष्टित-परिवेष्टित किया हुआ (लपेटा हुआ, खूब लपेटा हुआ) जितने अवकाशान्तर (आकाशप्रदेशों) को स्पर्श किये हुए रहता है, क्या वह फैलाया हुआ भी उतने ही अवकाशान्तर (आकाश-प्रदेशों) को स्पर्श करके रहता है?
उत्तर - हाँ गौतम! कम्बल शाटक आवेष्टित-परिवेष्टित किया हुआ जितने अवकाशान्तर (आकाश प्रदेशों) को स्पर्श करके रहता है, फैलाये जाने पर भी वह उतने ही अवकाशान्तर को स्पर्श करके रहता है।
२१. स्थूणा द्वार थूणा णं भंते! उड्डे ऊसिया समाणी जावइयं खेत्तं ओगाहित्ता णं चिट्ठइ, तिरियं वि यणं आयया समाणी तावइयं चेव खेत्तं ओगाहित्ता णं चिट्ठइ? .
हंता गोयमा! थूणा णं उर्ल्ड ऊसिया तं चेव जाव चिट्ठइ॥४४४॥ .
कठिन शब्दार्थ - थूणा - स्थूणा-स्तंभ (ढूंठ, बल्ली या खंभा), ऊसिया समाणी - ऊपर उठी हुई।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! स्थूणा (स्तंभ) ऊपर उठी हुई जितने क्षेत्र को अवगाहन करके रहती है, क्या तिरछी लम्बी की हुई भी वह उतने ही क्षेत्र को अवगाहन करके रहती है?
उत्तर - हाँ गौतम! स्थूणा ऊपर उठी हुई जितने क्षेत्र को अवगाहन करके रहती है, तिरछी लम्बी की हुई भी वह उतने ही क्षेत्र को अवगाहन करके रहती है।
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