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हंता गोयमा ! अणगारस्स भावियप्पणो मारणंतिय समुग्धाएणं समोहयस्स जे चरमा णिज्जरा पोग्गला, सुहुमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो !, सव्वं लोगं वि. य णं ओगाहित्ता णं चिट्ठति ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत भावितात्मा अनगार के जो चरम निर्जरा पुद्गल हैं, क्या वे पुद्गल सूक्ष्म कहे गए हैं? हे आयुष्मन् श्रमण ! क्या वे सर्वलोक को अवगाहन करके रहते हैं ?
उत्तर - हाँ गौतम! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत भावितात्मा अनगार के जो चरम निर्जरापुद्गल हैं, वे सूक्ष्म कहे गए हैं, हे आयुष्मन् श्रमण ! वे समग्र लोक को अवगाहन करके रहते हैं।
विवेचन प्रश्न भावितात्मा अनगार किसे कहते हैं ?
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प्रज्ञापना सूत्र
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उत्तर - जिसके द्रव्य और भाव से कोई अगार-गृह (घर) नहीं है, वह 'अनगार' कहलाता है। जिसने ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप से अपनी आत्मा को भावित की है वह अनगार 'भावितात्मा अनगार' कहलाता है ।
प्रश्न- चरम निर्जरा पुद्गल किसे कहते हैं ?
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उत्तर - चरम अर्थात् शैलेशी अवस्था के अन्तिम समय में होने वाले जो निर्जरा - पुद्गल होते हैं अर्थात् कर्म रूपी परिणमन से मुक्त कर्म पर्याय से रहित जो पुद्गल (परमाणु) होते हैं वे चरम निर्जरा पुद्गल कहलाते हैं।
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प्रश्न - यहाँ पर मारणान्तिक समुद्घात कैसे समझना चाहिये ?
उत्तर - यद्यपि शैलेशी अनगार के ( १४ गुणस्थान वाला) मारणांतिक समुद्घात नहीं होती है। तथापि यहाँ जो मारणातिक समुद्घात कहा है वह मात्र मरण के अर्थ में ही समझना चाहिये जो कि आगे के ३६ वें पद से स्पष्ट हो जाता है । भगवती सूत्र शतक २५ उद्देशक ६-७ में स्नातक, निर्ग्रन्थ व यथाख्यात चारित्र में मारणांतिक समुद्घात का निषेध किया गया है।
छउमत्थे णं भंते! मणुस्से तेसिं णिज्जरा पोग्गलाणं किं आणत्तं वा णाणत्तं वा ओमत्तं वा तुच्छत्तं वा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा जाणइ पासइ ?
गोमा ! णो इण समट्ठे ।
कंठिन शब्दार्थ - आणत्तं अन्यत्व, ओमत्तं - अवमत्वं ( हीनत्व) ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य उन चरम निर्जरा पुद्गलों के अन्यत्व या नानात्व, हीनत्व (अवमत्व) अथवा तुच्छत्व, गुरुत्व या लघुत्व को जानता देखता है ?
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