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पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-प्रथम उद्देशक - अनगार द्वार
आत्मांगुल से ही समझना चाहिये। श्रोत्रेन्द्रिय का विषय १२ योजन बताया है। सीधे (समश्रेणी में रहे हुए) शब्द तो १२ योजन से मिश्रित (वासित) सुने जाते हैं। यदि ध्वनि विस्तारक यंत्र आदि के द्वारा शब्दों को आवर्तित करके आगे प्रसारित किया जाता है तब तो आगे तक भी सुना जा सकता है।
परन्तु शब्द के पुद्गलों में गंध द्रव्यों की तरह स्वतंत्र वासित करने की शक्ति नहीं है। इसी तरह रस व स्पर्श के पुद्गलों में भी आगे वासित का गुण नहीं है। नौ योजन से आये पुद्गलों तक को जिह्वा से स्पर्श होने पर रसनेन्द्रिय ग्रहण कर लेती है। नौ योजन से अच्छिन्न गंध पुद्गल स्पृष्ट, प्रविष्ट होते ही घ्राणेन्द्रिय ग्रहण कर लेती है तथा उसमें वासित करने का गुण होने से प्रचुर गंध द्रव्य आगे भी पुद्गलों को वासित कर देने से नौ योजन से आगे यावत् ४००-५०० योजन की दूरी से भी ग्रहण कर लेती है जैसे चन्दन के वृक्षों की गंध से दूसरे वृक्षों में भी वैसी गंध आने लगती है।
एकेन्द्रिय के स्पर्शनेन्द्रिय का विषय ४०० धनुष, बेइन्द्रिय के स्पर्शनेन्द्रिय का विषय ८०० धनुष, तेइन्द्रिय के स्पर्शनेन्द्रिय का विषय १६०० धनुष, चउरिन्द्रिय के स्पर्शनेन्द्रिय का विषय ३२०० धनुष, असंज्ञी पंचेन्द्रिय के स्पर्शनेन्द्रिय का विषय ६४०० धनुष और संज्ञी पंचेन्द्रिय के स्पर्शनेन्द्रिय का विषय नौ योजन है। बेइन्द्रिय के रसनेन्द्रिय का विषय ६४ धनुष, तेइन्द्रिय के रसनेन्द्रिय का विषय १२८ धनुष, चउरिन्द्रिय के रसनेन्द्रिय का विषय २५६ धनुष, असंज्ञी पंचेन्द्रिय के रसनेन्द्रिय का विषय ५१२ धनुष और संज्ञी पंचेन्द्रिय के रसनेन्द्रिय का विषय नौ योजन है। तेइन्द्रिय के घ्राणेन्द्रिय का विषय १०० धनुष, चउरिन्द्रिय के घ्राणेन्द्रिय का विषय २०० धनुष, असंज्ञी पंचेन्द्रिय के घ्राणेन्द्रिय का विषय ४०० धनुष
और संज्ञी पंचेन्द्रिय के घ्राणेन्द्रिय का विषय नौ योजन है। चउरिन्द्रिय के चक्षु इन्द्रिय का विषय २९५४ धनुष, असंज्ञी पंचेन्द्रिय के चक्षु इन्द्रिय का विषय ५९०८ धनुष और संज्ञी पंचेन्द्रिय के चक्षु इन्द्रिय का विषय एक लाख योजन झाझेरा (अधिक) है। असंज्ञी पंचेन्द्रिय के श्रोत्रेन्द्रिय का विषय ८०० धनुष और संज्ञी पंचेन्द्रिय के श्रोत्रेन्द्रिय का विषय बारह योजन हैं। एकेन्द्रिय आदि के इन्द्रियों का विषय जो ऊपर बताया है वह मूल पाठ और टीका में नहीं है। शायद हस्त लिखित टब्बों में हो सकता है। उसके आधार से थोकड़े में बताया है।
१०. अनगार द्वार अणगारस्स णं भंते! भावियप्पणो मारणंतिय समुग्घाएणं समोहयस्स जे चरमा णिज्जरा पोग्गला, सुहुमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो!, सव्वं लोग वि य णं ते ओगाहित्ता णं चिटुंति?
कोई ८००० धनुष भी कहते हैं। तत्त्व केवली गम्य है।
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