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प्रज्ञापना सूत्र -
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों की श्रोत्रेन्द्रिय किस आकार की होती है ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों की श्रोत्रेन्द्रिय कदम्बपुष्प के आकार की होती है। इसी प्रकार जैसे समुच्चय जीवों की पंचेन्द्रियों की वक्तव्यता कही है, वैसी ही नैरयिकों की संस्थान, बाहल्य, पृथुत्व, कतिप्रदेश, अवगाढ और अल्पबहुत्व, इन छह द्वारों की भी वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि नैरयिकों की स्पर्शनेन्द्रिय किस आकार की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों की स्पर्शनेन्द्रिय दो प्रकार की कही गई है, यथा - भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। उनमें से जो भवधारणीय स्पर्शनेन्द्रिय है, वह हुण्डक संस्थान की है और जो उत्तर वैक्रिय स्पर्शनेन्द्रिय है, वह भी हुण्डक संस्थान की है। शेष सब प्ररूपणा पूर्ववत् समझनी चाहिये।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में नैरयिकों की इन्द्रियों के संस्थान, बाहल्य आदि की प्ररूपणा की गयी है। रयिकों के वैक्रिय शरीर दो प्रकार का होता है - १. भवधारणीय और २. उत्तर वैक्रिय। भवधारणीय शरीर उन्हें भव स्वभाव से मिलता है जो अत्यंत बीभत्स एवं हुण्डक संस्थान वाला होता है उनका उत्तरवैक्रिय शरीर भी हुण्डक संस्थान वाला ही होता है क्योंकि अशुभ नाम कर्म के उदय से वे चाहते हुए भी अच्छे शरीर की विक्रिया नहीं कर पाते हैं।
असुरकुमाराणं भंते! कइ इंदिया पण्णत्ता? . गोयमा! पंचइंदिया पण्णत्ता, एवं जंहा ओहियाणि जाव अप्पाबहुयाणि दोण्णि वि। णवरं फासिदिए दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - भवधारणिजे य उत्तरवेउव्विए य। तत्थ णं जे से भवधारणिज्जे से णं समचउरंस संठाणसंठिए पण्णत्ते, तत्थ णं जे से उत्तरवेउव्विए से णं णाणा संठाणसंठिए, सेसं तं चेव। एवं जाव थणियकुमाराणं ॥ ४३४॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! असुरकुमारों के कितनी इन्द्रियाँ कही गई हैं? .
उत्तर - हे गौतम! असुरकुमारों के पांच इन्द्रियाँ कही गई हैं। इसी प्रकार जैसे समुच्चय-औधिक जीवों के इन्द्रियों के संस्थान से लेकर दोनों प्रकार के अल्पबहुत्व तक की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार असुरकुमारों की इन्द्रिय सम्बन्धी वक्तव्यता कह देनी चाहिए। विशेषता यह कि इनकी स्पर्शनेन्द्रिय दो प्रकार की कही है, यथा-भवधारणीय स्पर्शनेन्द्रिय समचतुरस्र संस्थान वाली है और उत्तरवैक्रिय स्पर्शनेन्द्रिय नाना संस्थान वाली होती है। इसी प्रकार की इन्द्रिय सम्बन्धी वक्तव्यता नागकुमार देवों से लेकर स्तनितकुमार देवों तक की समझ लेनी चाहिए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में असुरकुमार आदि भवनवासी देवों की इन्द्रियों के संस्थान आदि की
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