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पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-प्रथम उद्देशक - चौबीस दण्डकों में संस्थान आदि की प्ररूपणा
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प्ररूपणा की गयी है। इन देवों में भी दो प्रकार के शरीर (स्पर्शनेन्द्रिय) होते हैं - १. भवधारणीय और २. उत्तर वैक्रिय। भवधारणीय शरीर समचौरस संस्थान वाला होता है जो भव के प्रारम्भ से अंत तक रहता है। जबकि उत्तर वैक्रिय शरीर नाना संस्थान वाला होता है क्योंकि वे स्वेच्छा से मन चाहा उत्तर वैक्रिय शरीर बना सकते हैं।
पुढवीकाइयाणं भंते! कइ इंदिया पण्णत्ता? . गोयमा! एगें फासिंदिए पण्णत्ते। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों के कितनी इन्द्रियाँ कही गई हैं ? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों के एक स्पर्शनेन्द्रिय ही कही गई हैं। पुढवीकाइयाणं भंते! फासिंदिए किं संठाणसंठिए पण्णत्ते? गोयमा! मसूरचंदसंठाणसंठिए पण्णत्ते। भावार्थ-प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय किस आकार की कही गई है ?
उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय मसूर-चन्द्र (मसूर नामक धान्य की दाल) के आकार की कही गई है।
पुढवीकाइयाणं भंते! फासिदिए केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते? गोयमा! अंगुलस्स असंखिज्जइभागं बाहल्लेणं पण्णत्ते। . ..
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय का बाहल्य (जाडाई मोटापन) कितना कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय का बाहल्य अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण कहा गया है।
पुढवीकाइयाणं भंते! फासिदिए केवइयं पोहत्तेणं ( पुहुत्तेणं) पण्णत्ते? गोयमा! सरीरप्पमाणमेत्ते पोहत्तेणं पण्णत्ते। भावार्थ-प्रश्न-हे भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय का विस्तार कितना कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय का विस्तार उनके शरीर परिमाण मात्र है। पुढवीकाइयाणं भंते! फासिंदिए कइ पएसिए पण्णत्ते? गोयमा! अणंत पएसिए पण्णत्ते। भावार्थ-प्रश्न-हे भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों की स्पर्शनेन्द्रिय कितने प्रदेशों की कही गयी है ?
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