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२. बाहुल्य द्वार
सोइंदिए णं भंते! केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ?
गोयमा! अंगुलस्स असंखिज्जइभागं बाहल्लेणं पण्णत्ते । एवं जाव फासिंदिए २ । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय का बाहल्य (जाडाई - मोटाई) कितना कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! श्रोत्रेन्द्रिय का बाहल्य अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण कहा गया है। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय से लेकर यावत् स्पर्शनेन्द्रिय के बाहल्य के विषय में समझना चाहिये ।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में इन्द्रियों के बाहल्य (जाडाई) का निरूपण किया गया है। सभी इन्द्रियों का बाहल्य अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण है। जैसा कि कहा गया है - "बाहल्लओ य सव्वाई अंगुल असंखभागं" अर्थात् सभी इन्द्रियों का बाहल्य (जाडाई - मोटापन) अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण होता है।
प्रज्ञापना सूत्र
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शंका - यदि स्पर्शनेन्द्रिय की जाडाई अंगुल के असंख्यातवें भाग हो तो तलवार छुरी आदि का आघात लगने पर वेदना का अनुभव क्यों होता है ?
समाधान - जैसे चक्षुरिन्द्रिय का विषय रूप है, घ्राणेन्द्रिय का विषय गंध है वैसे ही स्पर्शनेन्द्रिय का विषय शीत आदि स्पर्श है। जब तलवार, छुरी आदि का आघात लगता है तब शरीर में शीत आदि स्पर्श का अनुभव नहीं होता अपितु पीड़ा का अनुभव (वेदन) होता है और इस दुःख रूप वेदना को आत्मा सम्पूर्ण शरीर से अनुभव करती है केवल स्पर्शनेन्द्रिय से नहीं । जैसे ज्वर आदि की वेदना सम्पूर्ण शरीर से अनुभव की जाती है। शीतल पेय - ठण्डे शर्बत आदि पीने से शरीर के भीतर में शीतलता का अनुभव होता है इसका कारण यह है कि त्वचा सर्वप्रदेश पर्यन्तवर्ती होने से और शरीर के अन्दर तथा खाली जगह के ऊपर भी स्पर्शनेन्द्रिय का सद्भाव होने से शरीर के भीतर शीत आदि स्पर्शन का अनुभव होना युक्तिसंगत है।
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३. पृथुत्व द्वार
सोइंदिए णं भंते! केवइयं पोहत्तेणं (पुहुत्तेणं) पण्णत्ते ?
गोयमा! अंगुलस्स असंखिज्जइभागं पोहत्तेणं पण्णत्ते । एवं चक्खिदिए वि घादि वि ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! श्रोत्रेन्द्रिय कितनी पृथु - विशाल (विस्तार वाली) कही गई है ?
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