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पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-प्रथम उद्देशक - संठाण द्वार
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स्पर्शनेन्द्रिय निर्वृत्ति के बाह्य और आभ्यंतर भेद नहीं होते हैं। क्योंकि स्पर्शनेन्द्रिय निर्वृत्ति सब प्राणियों के एक सरीखी नहीं होती है।
१. संठाण द्वार सोइंदिए णं भंते! किं संठिए पण्णत्ते? गोयमा! कलंबुया पुष्फ संठाणसंठिए पण्णत्ते। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! श्रोत्रेन्द्रिय किस आकार की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! श्रोत्रेन्द्रिय कदम्ब (सरसों) पुष्प के आकार की कही गई है। चक्खिदिए णं भंते! किं संठिए पण्णत्ते? गोयमा! मसूर चंद संठाणसंठिए पण्णत्ते। भावार्थ - प्रश्न - हे, भगवन्! चक्षुरिन्द्रिय किस आकार की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! चक्षुरिन्द्रिय मसूर (मसूर की दाल) चन्द्र के आकार की कही गई है। घाणिंदिए णं भंते! किं संठिए पण्णत्ते? . गोयमा! अइमुत्तग चंदसंठाणसंठिए पण्णत्ते। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! घ्राणेन्द्रिय का आकार किस प्रकार का कहा है? उत्तर - हे गौतम! घ्राणेन्द्रिय अतिमुक्तक (ताल वृक्ष) का पुष्प के आकार की कही गयी है। जिब्भिंदिए णं भंते! किं संठिए पण्णत्ते? गोयमा! खुरप्प संठाणसंठिए पण्णत्ते। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जिह्वेन्द्रिय किस आकार की कही गयी है? उत्तर - हे गौतम! जिह्वेन्द्रिय खुरपे (घांस काटने का एक औजार) के आकार की कही गयी है। फासिंदिए णं भंते! किं संठिए पण्णत्ते? गोयमा! णाणा संठाणसंठिए पण्णत्ते १॥४२६॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! स्पर्शनेन्द्रिय का आकार किस प्रकार का है ? उत्तर - हे गौतम! स्पर्शनेन्द्रिय नाना प्रकार के आकार की कही गई है। .
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में प्रथम संस्थान द्वार का निरूपण किया गया है। जिसमें पांचों इन्द्रियों के आकार का कथन किया गया है।
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