________________
पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-प्रथम उद्देशक - अवगाढ़ द्वार
उत्तर - हे गौतम! श्रोत्रेन्द्रिय अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण विस्तार वाली कही गई है। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय और घ्राणेन्द्रिय की पृथुता-विशालता के विषय में समझना चाहिए।
जिब्भिंदिए णं भंते! केवइयं पोहत्तेणं पण्णत्ते ? · गोयमा! अंगुलपुहुत्तं पोहत्तेणं पण्णत्ते।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जिह्वेन्द्रिय कितनी पृथु (विस्तृत) कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! जिह्वेन्द्रिय अंगुल-पृथक्त्व दो अंगुल से अनेक अंगुल तक विशाल (विस्तृत) कही गयी है।
फासिंदिए णं भंते! केवइयं पोहत्तेणं पण्णत्ते? गोयमा! सरीरप्पमाणमेत्ते पोहत्तेणं पण्णत्ते ३॥ ४२७॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! स्पर्शनेन्द्रिय कितनी पृथु (विस्तृत) कही गयी है ? उत्तर - हे गौतम! स्पर्शनेन्द्रिय सम्पूर्ण शरीर प्रमाण पृथु (विशाल) कही गई है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में इन्द्रियों के विस्तार का कथन किया गया है। स्पर्शनेन्द्रिय के सिवाय शेष चार इन्द्रियों का विस्तार आत्मांगुल से और स्पर्शनेन्द्रिय का विस्तार उत्सेधांगुल से समझना चाहिये।
४. कति-प्रदेश द्वार . सोइंदिए णं भंते! कइपएसिए पण्णत्ते? गोयमा! अणंत.पएसिए पण्णत्ते। एवं जाव फासिंदिए ४॥४२८॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! श्रोत्रेन्द्रिय कितने प्रदेश वाली कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! श्रोत्रेन्द्रिय अनन्त-प्रदेशी कही गई है। इसी प्रकार यावत् स्पर्शेन्द्रिय के प्रदेशों के सम्बन्ध में कह देना चाहिए।
५. अवगाढ़ द्वार सोइंदिए णं भंते! कइपएसोगाढे पण्णत्ते? गोयमा! असंखिजपएसोगाढे पण्णत्ते। एवं जाव फासिदिए ५॥ ४२९॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय कितने प्रदेशों में अवगाढ़ कही गई है ?
उत्तर - हे गौतम! श्रोत्रेन्द्रिय असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ कही गई है। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय से लेकर यावत् स्पर्शनेन्द्रिय तक के विषय में कह देना चाहिये।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org