________________ इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान पद - शरीर संयोग द्वार 389 roccommompocom गोयमा! जस्स ओरालिय सरीरं तस्स वेउव्विय सरीरं सिय अस्थि सिय णत्थि, जस्स वेउब्विय सरीरं तस्स ओरालिय सरीरं सिय अत्थि सिय णत्थि। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जिस जीव के औदारिक शरीर होता है क्या उसके वैक्रिय शरीर भी होता है ? और जिसके वैक्रिय शरीर होता है, क्या उसके औदारिक शरीर भी होता है? उत्तर - हे गौतम! जिसके औदारिक शरीर होता है, उसके वैक्रिय शरीर कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं होता है और जिसके वैक्रिय शरीर होता है, उसके औदारिक शरीर कदाचित् होता है तथा कदाचित् नहीं होता है। विवेचन - जिसके औदारिक शरीर होता है उसके वैक्रिय शरीर विकल्प (भजना) से होता है क्योंकि वैक्रिय लब्धि सम्पन्न कोई औदारिक शरीरी जीव यदि वैक्रिय शरीर बनाता है तो उसके वैक्रिय शरीर होता है। जो जीव वैक्रिय लब्धि संपन्न नहीं है अथवा वैक्रिय लब्धि युक्त होकर भी वैक्रिय शरीर नहीं बनाता, उसके वैक्रिय,शरीर नहीं होता। देव और नैरयिक वैक्रिय शरीरधारी होते हैं उनके औदारिक शरीर नहीं होता किन्तु जो तिर्यंच या मनुष्य वैक्रिय शरीर वाले होते हैं उनके औदारिक शरीर होता है। - जस्स णं भंते! ओरालिय सरीरं तस्स आहारग सरीरं, जस्स आहारगसरीरं तस्स ओरालिय सरीरं? गोयमा! जस्स ओरालिय सरीरं तस्स आहारग सरीरं सिय अस्थि सिय णत्थि, जस्स पुण आहारग सरीरं तस्स ओरालिय सरीरं णियमा अत्थि। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जिसके औदारिक शरीर होता है, क्या उसके आहारक शरीर होता है? तथा जिसके आहारक शरीर होता है उसके क्या औदारिक शरीर होता है? उत्तर - हे गौतम! जिसके औदारिक शरीर होता है, उसके आहारक शरीर कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं भी होता है। किन्तु जिस जीव के आहारक शरीर होता है, उसके नियम से औदारिक शरीर होता है। विवेचन - जिसके औदारिक शरीर होता है उसके आहारक शरीर होता भी है, नहीं भी होता। जो चौदह पूर्वधारी आहारक लब्धि संपन्न मुनि हैं उनके आहारक शरीर होता है, अन्य के नहीं। जिसके आहारक शरीर होता है उसके औदारिक शरीर अवश्य होता है क्योंकि औदारिक शरीर के बिना आहारक लब्धि नहीं होती है। जस्स णं भंते! ओरालिय सरीरं तस्स तेयग सरीरं, जस्स तेयग सरीरं तस्स . ओरालिय सरीरं? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org