________________ 388 प्रज्ञापना सूत्र भावार्थ-प्रश्न-हे भगवन्! वैक्रिय शरीर के लिए कितनी दिशाओं से पुद्गलों का चय होता है? उत्तर - हे गौतम! वैक्रिय शरीर के लिए नियम से छह दिशाओं से पुद्गलों का चय होता है। एवं आहारग सरीरस्स वि। भावार्थ - इसी प्रकार वैक्रिय शरीर के समान आहारक शरीर के पुद्गलों का चय भी नियम से छह दिशाओं से होता है। विवेचन - वैक्रिय शरीर और आहारक शरीर त्रस नाड़ी के मध्य में ही संभव है अन्यत्र नहीं अत: दोनों शरीरों के पुद्गलों का चय छहों दिशाओं से होता है। तेयाकम्मगाणं जहा ओरालिय सरीरस्स। भावार्थ - तैजस और कार्मण शरीर के पुद्गलों का चय औदारिक शरीर के पुद्गलों के चय के समान समझना चाहिए। . विवेचन - तैजस और कार्मण शरीर सभी संसारी जीवों के होते हैं इसलिए जिस प्रकार औदारिक शरीर के विषय में व्याघात के सिवाय छह दिशाओं से और व्याघात की अपेक्षा तीन, चार और पांच दिशाओं से पुद्गलों का चय होता है, उसी प्रकार तैजस और कार्मण शरीर के विषय में भी समझना चाहिये। ओरालिय सरीरस्स णं भंते! कइदिसिं पोग्गला उवचिजति? गोयमा! एवं चेव, जाव कम्मग सरीरस्स। भावार्थ-प्रश्न-हे भगवन्! औदारिक शरीर के पुद्गलों का उपचय कितनी दिशाओं से होता है ? उत्तर - हे गौतम! जैसे चय के विषय में कहा है, इसी प्रकार उपचय के विषय में भी औदारिक शरीर से लेकर कार्मण शरीर तक कहना चाहिए। एवं उवचिजंति, अवचिजंति॥५७८॥ भावार्थ - औदारिक आदि पांचों शरीरों के पुद्गलों का जिस प्रकार उपचय होता है, उसी प्रकार उनका अपचय भी होता है। विवेचन - बहुत अधिक चय होना उपचय एवं पुद्गलों का ह्रास होना अपचय कहलाता है। जैसा चय के विषय में कहा है वैसा ही उपचय और अपचय के विषय में भी समझना चाहिये। 5. शरीर संयोग द्वार जस्स णं भंते! ओरालिय सरीरं तस्स वेउव्विय सरीरं, जस्स वेउब्विय सरीरं तस्स ओरालिय सरीरं? . .. पागला उवचिजति? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org