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________________ 370 प्रज्ञापना सूत्र उत्तर - हे गौतम! असुरकुमार देवों की दो प्रकार की शरीर की अवगाहना कही गई है, यथा - भवधारणीया और उत्तरवैक्रिया। उनमें से भवधारणीया शरीर की अवगाहना जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट सात हाथ की है। उनकी उत्तरवैक्रिया अवगाहना जघन्य से अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट एक लाख योजन की है। एवं जाव थणियकमाराणं। भावार्थ - इसी प्रकार नागकुमार देवों से लेकर स्तनितकुमार देवों तक की भवधारणीया और उत्तरवैक्रिया शरीर की अवगाहना जघन्यतः और उत्कृष्टतः समझ लेनी चाहिए। एवं ओहियाणं वाणमंतराणं। भावार्थ - इसी प्रकार पूर्ववत् औधिक (समुच्चय) वाणव्यन्तर देवों की दोनों प्रकार की जघन्य, उत्कृष्ट शरीर की अवगाहना समझ लेनी चाहिए। एवं जोइसियाणं वि। भावार्थ - इसी तरह ज्योतिषी देवों की दोनों प्रकार की जघन्य, उत्कृष्ट शरीर की अवगाहना भी जान लेनी चाहिए। सोहम्मी साणग देवाणं एवं चेव, उत्तरवेउव्विया जाव अच्चुओ कप्पो, णवरं सणंकुमारे भवधारणिजा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखिजइभागं, उक्कोसेणं छ रयणीओ। एवं माहिंदे वि, बंभलोयलंतगेसु पंच रयणीओ, महासुक्कसहस्सारेसु चत्तारि रयणीओ, आणय-पाणय-आरणच्चुएसु तिण्णि रयणीओ। भावार्थ- सौधर्म और ईशान कल्प के देवों की यावत् अच्युतकल्प के देवों तक की भवधारणीया शरीर की अवगाहना भी इन्हीं के समान समझनी चाहिए, उत्तरवैक्रिया-शरीर की अवगाहना भी पूर्ववत् समझनी चाहिए। विशेषता यह है कि सनत्कुमारकल्प के देवों की भवधारणीया शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट छह हाथ की है, इतनी ही माहेन्द्रकल्प के देवों की शरीर की अवगाहना होती है। ब्रह्मलोक और लान्तक कल्प के देवों की शरीर की अवगाहना पांच हाथ तथा महाशुक्र और सहस्रार कल्प के देवों की शरीर की अवगाहना चार हाथ की एवं आनत, प्राणत, आरण और अच्युतकल्प के देवों की शरीर की अवगाहना तीन हाथ की होती है। गेविजग कप्पातीत वेमाणिय देव पंचिंदिय वेउब्बिय सरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा! गेवेजग देवाणं एगा भवधारणिजा सरीरोगाहणा पण्णत्ता।सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखिजइभागं, उक्कोसेणं दो रयणीओ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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