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________________ इक्कीसवां अवगाहना-सस्थान पद - प्रमाण द्वार 369 mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmporammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmocpommmmm तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय वेउव्विय सरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स संखिजइभाग, उक्कोसेणं जोयणसयपुहुत्तं। . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! तिर्यंचयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर की अवगाहना कितनी कही गई है? उत्तर - हे गौतम! तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर की अवगाहना जघन्य से अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट शतयोजन पृथक्त्व (अनेक सौ योजन) की होती है। मणुस्स पंचिंदिय वेउव्वियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? . ... गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स संखिजइभागं, उक्कोसेणं साइरेगंजोयणसयसहस्सं।" भावार्थ-प्रश्न-हे भगवन्! मनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर की अवगाहना कितनी कही गई है? उत्तर - हे गौतम! मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर की अवगाहना जघन्य से अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट कुछ अधिक एक लाख योजन की कही गई है। . विवेचन - तिर्यंच पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना शतयोजन पृथक्त्व (बहुलता से दौ सो से नौ सौ योजन) होती है क्योंकि इससे अधिक वैक्रिय करने की उनकी शक्ति नहीं होती है। मनुष्यों में कुछ अधिक लाख योजन प्रमाण वैक्रिय शरीर होता है क्योंकि विष्णुकुमार मुनि द्वारा ऐसा वैक्रिय शरीर बनाने का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है। तिर्यंच पंचेन्द्रियों और मनुष्यों की जघन्य शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण (प्रारंभ काल में) होती है किन्तु असंख्यातवें भाग प्रमाण नहीं, क्योंकि वे इस प्रकार का प्रयत्न नहीं कर सकते हैं। असुरकुमार भवणवासि देव पंचिंदिय वेउव्विय सरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? - गोयमा! असुरकुमाराणं देवाणं दुविहा सरीरोगाहणा पण्णत्ता। तंजहा - भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जा सा भवधारणिजा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखिजइभाग, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ। तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखिज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! असुरकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर की अवगाहना कितनी कही गई है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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