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________________ भावार्थ - बालुकाप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की भवधारणीया अवगाहना इकतीस धनुष एक रलि की है और उत्तरवैक्रिया अवगाहना बासठ धनुष दो हाथ की है। पंकप्पभाए भवधारणिज्जा बावढि धणूई दो रयणीओ, उत्तरवेउव्विया पणवीसं धणुसयं। . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पंकप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की भवधारणीया अवगाहना बासठ धनुष दो हाथ की है और उत्तरवैक्रिया अवगाहना एक सौ पच्चीस धनुष की है। धूमप्पभाए भवधारणिजा पणवीसं धणुसयं, उत्तरवेउब्बिया अड्डाइज्जाइं धणुसयाई। भावार्थ - धूमप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की भवधारणीया अवगाहना एक सौ पच्चीस धनुष की है और उत्तरवैक्रिया अवगाहना अढाई सौ धनुष की है। तमाए भवधारणिज्जा अड्डाइजाइंधणुसयाई, उत्तरवेउव्विया पंच धणुसयाई। ... भावार्थ - तमःप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की भवधारणीया अवगाहना अढाई सौ धनुष की है और उत्तरवैक्रिया अवगाहना पांच सौ धनुष की है। अहेसत्तमाए भवधारणिजा पंच धणुसयाई, उत्तरवेउव्विया धणुसहस्सं, एयं / उक्कोसेणं। भावार्थ - अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिकों की भवधारणीया अवगाहना पांच सौ धनुष की और उत्तरवैक्रिया अवगाहना एक हजार धनुष की है। यह समस्त नरकपृथ्वियों के नैरयिकों के भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना कही गई है। ___ जहण्णेणं भवधारणिजा अंगुलस्स असंखिजइभाग, उत्तरवेउव्विया अंगुलस्स : संखिजइभाग। ___ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन सबकी जघन्य भवधारणीया अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग है और उत्तरवैक्रिया अवगाहना अंगुल के संख्यातवें भाग है। .. विवेचन - पहली नारकी से सातवीं नारकी तक भवधारणीय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट पहली नारकी की 7 // / (पोने आठ) धनुष 6 अंगुल की होती है। दूसरी नारकी की 15 // धनुष 12 अंगुल, तीसरी नारकी की 31 / धनुष, चौथी नारकी की 62 // धनुष, पांचवीं नारकी की 125 धनुष, छठी नारकी की 250 धनुष और सातवीं नारकी की 500 धनुष की होती है। उत्तरवैक्रिय करे तो जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग उत्कृष्ट अपनी अपनी अवगाहना से दुगुनी। जैसे सातवीं नारकी की भवधारणीय शरीर की अवगाहना 500 धनुष की और उत्तरवैक्रिय करे तो 1000 धनुष की होती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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