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________________ चौदहवाँ कषाय पद - आठ कर्म प्रकृतियों का चय आदि २५ उदीरेंति, उदीरिस्संति, वेदिंसु, वेदेति, वेदइस्संति, णिजरिसु, णिजरेंति, णिजरिस्संति, एवं एए जीवाइया वेमाणिय पज्जवसाणा अट्ठारस दंडगा जाव वेमाणिया णिजरिंसु णिजरेंति णिजरिस्संति। आय पइट्ठिय खेत्तं पडुच्च अणंताणुबंधि आभोगे। चिण उवचिण बंध उदीर वेय तह णिजरा चेव॥१॥॥४२४॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जीवों ने कितने कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों को बांधा है ?, बांधते हैं और बांधेंगे? उत्तर - हे गौतम! चार कारणों से जीवों ने आठ कर्म प्रकृतियों को बांधा है, बांधते हैं और बांधेगे, वे इस प्रकार हैं - क्रोध से यावत् लोभ से। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक के जीवों ने पूर्वोक्त चार कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों को बांधा है, बांधते हैं और बांधेगे, उदीरणा की है, उदीरणा करते हैं और उदीरणा करेंगे तथा वेदन किया है, वेदन करते हैं और वेदन करेंगे, इसी प्रकार निर्जरा की है, निर्जरा करते हैं और निर्जरा करेंगे। इस प्रकार समुच्चय जीवों तथा नैरयिकों से लेकर वैमानिकों पर्यन्त आठ कर्म प्रकृतियों के चय, उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदन एवं निर्जरा की अपेक्षा से छह, तीनों (भूत, वर्तमान एवं भविष्य) काल के तीन-तीन भेद के कुल अठारह दण्डक यावत् वैमानिकों ने निर्जरा की, निर्जरा करते हैं तथा निर्जरा करेंगे तक कह देना चाहिये। गाथा का अर्थ - प्रस्तुत प्रकरण में आत्म प्रतिष्ठित क्षेत्र की अपेक्षा से, अनन्तानुबंधी, आभोग, आठ कर्म प्रकृतियों के चय, उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदना तथा निर्जरा का कथन किया गया है। विवेचन - चार स्थान क्रोध, मान, माया और लोभ के वश होकर जीव ने भूत काल में आठ कर्मों का चय किया है, उपचय किया है, आठ कर्म बांधे हैं, आठ कर्मों की उदीरणा की है, आठ कर्म वेदे हैं और आठ कर्म की निर्जरा की है। वर्तमान में भी आठ कर्मों का चय, उपचय, बंध, उदीरणा, वेदन और निर्जरा करता है और भविष्य में भी करेगा। १. चय - कषाय परिणत आत्मा का कर्म पुद्गल ग्रहण करना। २. उपचय - अबाधा काल समाप्त हो जाने पर ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों का निषेक करना। ३. बंध- निकाचित बंध करना। ४. उदीरणा - उदय में नहीं आये हुए कर्मों का तप आदि प्रयत्न द्वारा उदयावलिका में प्रवेश करना। .. कर्म विशेष का अबाधा काल समाप्त होने पर प्रथम समय में बहुत प्रदेशों का उदय में आना और दूसरे तीसरे आदि समयों में हीन हीनतर प्रदेशों का उदय में आना 'निषेक' कहलाता है। असत् कल्पना से २५ समय की स्थिति वाले कर्म विशेष के १०५० परमाणु बांधे। पांच समय का अबाधा काल समाप्त होने पर छठे समय में १००, सातवें समय में ९५ आठवें समय में ९० यावत् पच्चीस समय में पांच कर्म परमाणु उदय आकर यह कर्म निःशेष हो जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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