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प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - हे गौतम! चार कारणों से जीव आठ कर्म प्रकृतियों का चय करते हैं, वे इस प्रकार हैं - १. क्रोध से २. मान से ३. माया से और ४. लोभ से। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिक देवों तक के विषय में प्ररूपणा करनी चाहिये।
जीवा णं भंते! कइहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्पपगडीओ चिणिस्संति? ..
गोयमा! चउहि ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिस्संति, तंजहा - कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं। एवं णेरइया जाव वेमाणिया।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव कितने कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों का चय करेंगे? (यह . भविष्य काल सम्बन्धी प्रश्न है)
उत्तर - हे गौतम! चार कारणों से जीव आठ कर्म प्रकृतियों का चय करेंगे, वे इस प्रकार हैं:- १. क्रोध से २. मान से ३. माया से और ४. लोभ से। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक के विषय में प्ररूपणा कर देनी चाहिये।
जीवा णं भंते! कइहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिंसु?
गोयमा! चउहि ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिंसु, तंजहा - कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं। एवं णेरइया जाव वेमाणिया।
भावार्थ-प्रश्न-हे भगवन् ! जीवों ने कितने कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों का उपचय किया है ?
उत्तर - हे गौतम! जीवों ने चार कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों का उपचय किया है, वे इस प्रकार हैं - १. क्रोध से २. मान से ३. माया से और ४. लोभ से। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिकों तक के विषय में समझना चाहिये।
जीवा णं भंते! कइहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणंति?
गोयमा! चउहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणंति कोहेणं जाव लोभेणं, एवं णेरइया जाव वेमाणिया। एवं उवचिणिस्संति।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव कितने कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों का उपचय करते हैं?
उत्तर - हे गौतम! चार कारणों से जीव आठ कर्म प्रकृतियों का उपचय करते हैं, वे इस प्रकार हैं - १. क्रोध से. २. मान से ३. माया से और ४. लोभ से। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिकों तक चौबीस ही दण्डक के विषय में कहना चाहिए। इसी प्रकार पूर्वोक्त चार कारणों से जीव आठ कर्म प्रकृतियों का उपचय करेंगे, यह कहना चाहिए।
जीवा णं भंते! कइहिं ठाणेहिं अट्ट कम्मपगडीओ बंधिंसु?
गोयमा! चउहि ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ बंधिंसु, तंजहा - कोहेणं, माणेणं मायाए लोभेणं, एवं णेरड्या जाव वेमाणिया, बंधिंसु, बंधंति, बंधिस्संति, उदीरेंसु,
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