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________________ dddddddd इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान पद - संस्थान द्वार ÖHÖNÖKÖKÖKÜ ÖNÖKÖKÖTŐKÖÖ Jain Education International ३४१ शरीर अनेक प्रकार की आकृति वाले होते हैं क्योंकि देश काल और जाति के भेद से उनके संस्थान अनेक प्रकार के कहे गये हैं । आगमों में कहीं पर भी पांच स्थावरों के शरीरों का 'हुंडक संस्थान' नहीं बताया है । यद्यपि एकेन्द्रिय जीवों के हुण्डक नाम कर्म के उदय से हुण्डक संस्थान ही है। तथापि उस हुण्डक संस्थान में भी 'मसूर की दाल' आदि निश्चित आकार होने से पृथ्वीकायादि चार स्थावरों में निश्चित आकार बता दिया है। वनस्पति में ऐसा निश्चित आकार नहीं होने से उसमें 'नाना प्रकार का संस्थान बताया है । ' 'मसूरचन्द्र' आदि संस्थानों का समावेश भी हुण्डक संस्थान में ही होता है । इस पद में पृथ्वीकायादि स्थावरों के चारों भेदों (सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक अपर्याप्तक) में 'मसूर की दाल' आदि निश्चित संस्थान बताये गये हैं। क्योंकि जो आकार बादरों के होते हैं वे ही आकार सूक्ष्मों में भी छोटे रूप में होते हैं । प्रज्ञापना पद १, जीवाभिगम, उत्तराध्ययन सूत्र अ. ३६ आदि में एकेन्द्रियों के अपर्याप्तक जीवों के संस्थान नहीं बताये गये हैं। क्योंकि अपर्याप्तक जीवों के शरीर वर्णादि से असम्प्राप्त ( विभाग नहीं किया जा सके) होने से इन्द्रिय ग्रांही नहीं होते हैं । अतः यहाँ पर उनके स्पष्ट आकार ग्रहण नहीं होने से संस्थान नहीं बताये हैं । परिमण्डल आदि पांच संस्थानों की अपेक्षा संस्थानों का निषेध किया गया है । समचतुरस्त्र आदि ६ संस्थानों में से तो यहाँ बताये गये वैसे संस्थान होते हैं । विकलेन्द्रिय के सभी भेदों में कोई भी निश्चित आकार नहीं होकर नानाविध आकार होने से उनमें 'हुण्डक संस्थान' कह दिया है, ऐसी संभावना है। यहाँ पर औदारिक शरीर का और वैक्रिय शरीर का जैसा संस्थान बताया है | वैसा ही आकार उसके तैजस और कार्मण शरीर का समझना चाहिए। वनस्पति में गुलाब, कमल आदि अनेक पुष्पों का जो सुन्दर आकार दृष्टिगोचर होता है वह आकार अनेक जीवों के शरीरों का है। एक एक जीव के शरीर का आकार वैसा सुन्दर नहीं होने से एकेन्द्रियों में हुण्डक संस्थान ही माना गया है। बेइंदिय ओरालिय सरीरे णं भंते! किं संठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! हुंड संठाणसंठिए पण्णत्ते । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! बेइन्द्रिय औदारिक शरीर का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है ? 00000 उत्तर - हे गौतम! बेइन्द्रिय औदारिक शरीर का संस्थान हुंडक संस्थान वाला कहा गया है। एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि । भावार्थ - इसी प्रकार पर्याप्तक और अपर्याप्तक बेइन्द्रिय औदारिक शरीरों का संस्थान भी हुंडक कहा गया है। एवं इंदियचउरिदियाण वि । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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