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प्रज्ञापना सूत्र
भावार्थ - इसी प्रकार तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय के पर्याप्तक, अपर्याप्तक शरीरों का संस्थान भी हुंडक समझना चाहिए। ____ विवेचन - पर्याप्तक और अपर्याप्तक बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय जीवों के प्रत्येक के औदारिक शरीर हुण्डक संस्थान वाले होते हैं।
तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरेणं भंते! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते?
गोयमा! छव्विह संठाणसंठिए पण्णत्ते। तंजहा - समचउरंस संठाणसंठिए जाव हुंड संठाणसंठिए वि, एवं पजत्तापजत्ताण वि ३।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर किस संस्थान वाला कहा गया है? ... ___उत्तर - हे गौतम! तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है, वह इस प्रकार है - समचतुरस्र संस्थान से लेकर हुंडक संस्थान पर्यन्त। इसी प्रकार पर्याप्तक अपर्याप्तक तिर्यंच पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर के संस्थान के विषय में भी समझ लेना चाहिए।
विवेचन - शरीर के आकार को संस्थान कहते हैं। तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के औदारिक शरीर. छहों प्रकार के संस्थान वाले होते हैं। छह संस्थानों का स्वरूप इस प्रकार है -
१. समचतुरस्त्र संस्थान - सम का अर्थ है समान, चतुः का अर्थ है चार और अस्र का अर्थ है कोण। पालथी मार कर बैठने पर जिस शरीर के चारों कोण समान हों अर्थात् आसन और कपाल का अन्तर, दोनों जानुओं का अन्तर, वाम स्कन्ध और दक्षिण जानु का अन्तर तथा दक्षिण स्कन्ध और वाम जानु का अन्तर समान हो, उसे समचतुरस्र संस्थान कहते हैं।
अथवा सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जिस शरीर के सम्पूर्ण अवयव ठीक प्रमाण वाले हों, उसे समचतुरस्र संस्थान कहते हैं। जैसे सभी जाति के देव समचतुरस्र संस्थान वाले ही होते हैं।
२. न्यग्रोधपरिमंडल संस्थान - वट वृक्ष को न्यग्रोध कहते हैं। जैसे वट वृक्ष ऊपर के भाग में फैला हुआ होता है और नीचे के भाग में संकुचित, उसी प्रकार जिस संस्थान में नाभि के ऊपर का भाग विस्तार वाला अर्थात् शरीर शास्त्र में बताए हुए प्रमाण वाला हो और नीचे का भाग हीन अवयव वाला हो उसे न्यग्रोध परिमंडल संस्थान कहते हैं। __ . ३. सादि संस्थान - यहाँ सादि शब्द का अर्थ नाभि से नीचे का भाग है। जिस संस्थान में नाभि
के नीचे का भाग पूर्ण और ऊपर का भाग हीन हो उसे सादि संस्थान कहते हैं। .. कहीं कहीं सादि संस्थान के बदले साची संस्थान भी मिलता है। साची सेमल (शाल्मली) वृक्ष को कहते हैं। शाल्मली वृक्ष का धड़ जैसा पुष्ट होता है वैसा ऊपर का भाग नहीं होता। इसी प्रकार जिस शरीर में नाभि के नीचे का भाग परिपूर्ण होता है पर ऊपर का भाग हीन होता है वह साची संस्थान है।
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