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प्रज्ञापना सूत्र
विवेचन - सूक्ष्म आदि के भेद से चार प्रकार के अप्कायिक जीवों के औदारिक शरीर स्तिबुक बिन्दु-परपोटे की आकृति जैसे हैं यानी स्तिबुक की आकृति जैसा बिन्द्र जो पवन आदि से चारों तरफ फैला नहीं है उसका जो संस्थान-आकार है उस जैसी आकृति वाले हैं।
तेउक्काइय एगिदिय ओरालिय सरीरे णं भंते! किं संठिए पण्णत्ते? गोयमा! सूईकलाव संठाणसंठिए पण्णत्ते।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! तेजस्कायिक-एकेन्द्रिय औदारिक शरीर का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! तेजस्कायिकों के शरीर का संस्थान सूइयों के ढेर (सूचीकलाप) के जैसा कहा गया है।
एवं सुहुम बायर पजत्तापजत्ताण वि।
भावार्थ - इसी प्रकार का संस्थान तेजस्कायिकों के सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तों • के शरीरों का समझना चाहिए। .
विवेचन - सूक्ष्म आदि के भेद से चार प्रकार के तैजस्कायिक जीवों के औदारिक शरीर सूइयों के ढेर जैसी आकृति के होते हैं।
वाउक्काइयाण वि पडीगा संठाणसंठिए। भावार्थ - वायुकायिक जीवों के औदारिक शरीर का संस्थान पताका के समान होता है। एवं सुहुम बायर पजत्तापज्जत्ताण-वि।
भावार्थ - इसी प्रकार का संस्थान वायुकायिकों के सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तकों के शरीरों का भी समझना चाहिए।'
विवेचन - सूक्ष्म आदि के भेद से चार प्रकार के वायुकायिक जीवों के औदारिक शरीर पताकाध्वजा की आकृति जैसे होते हैं।
वणस्सइकाइयाणं णाणा संठाणसंठिए पण्णत्ते। भावार्थ - वनस्पतिकायिकों के शरीर का संस्थान नाना प्रकार का कहा गया है। एवं सुहम बायर पजत्तापजत्ताण वि।
भावार्थ - इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों के सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तकों के शरीरों का संस्थान भी नाना प्रकार का होता है।
विवेचन - सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तक प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवों के औदारिक
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