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इक्कीसवां अवगाहना संस्थान पद - विधि द्वार
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एवं गब्भवक्कंतिय उरपरिसप्पे चउक्कओ भेओ ।
भावार्थ - इसी प्रकार गर्भज उरः परिसर्प स्थलचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर के भी पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो प्रकार मिला कर सम्मूच्छिम और गर्भज दोनों के कुल चार भेद समझ लेने चाहिए।
एवं भुयपरिसप्पा वि सम्मुच्छिम गब्भवक्कंतिया पज्जत्ता अपज्जत्ता य।
भावार्थ - इसी प्रकार भुजपरिसर्प स्थलचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर के भी सम्मूच्छिम एवं गर्भज तथा दोनों के पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये चार भेद समझने चाहिए।
खहयरा दुविहा पण्णत्ता । तंजहा सम्मुच्छिमा य गब्भवक्कंतिया य ।
भावार्थ - खेचर - तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर भी दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - सम्मूच्छिम और गर्भज ।
सम्मुच्छिमा दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - पज्जत्ता अपज्जत्ता य ।
भावार्थ - सम्मूच्छिम खेचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - पर्याप्तक और अपर्याप्तक ।
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गब्भवक्कंतिया वि पज्जत्ता अपज्जत्ता य ।
भावार्थ - गर्भज खेचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर भी पर्याप्तक और अपर्याप्तक के भेद से दो प्रकार का कहा गया है।
विवेचन तिर्यंच पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर जलचर, स्थलचर और खेचर के भेद से तीन प्रकार का कहा गया है। जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर भी सम्मूच्छिम और गर्भज के भेद से दो प्रकार का है और पर्याप्तक तथा अपर्याप्तक के भेद से प्रत्येक के दो-दो प्रकार हैं । स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर के दो भेद हैं- चतुष्पद और परिसर्प । चतुष्पद स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर भी सम्मूच्छिम और गर्भज के भेद से दो प्रकार का है और इन दोनों के भी पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो-दो भेद हैं। परिसर्प स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर की उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प के भेद से दो प्रकार का है। इनके भी सम्मूच्छिम और गर्भज ऐसे दो-दो प्रकार होते हैं और उनके भी प्रत्येक के पर्याप्तक और अपर्याप्तक भेद होते हैं। सभी मिल कर परिसर्प स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर के आठ भेद होते हैं। खेचर पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर सम्मूच्छिम और गर्भ के भेद से दो प्रकार का है । पुनः प्रत्येक के पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो भेद होते हैं। इस प्रकार जलचर के चार, चतुष्पद स्थलचर के चार, परिसर्प स्थलचर के आठ और खेचर के चार इस प्रकार तिर्यंच पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर के बीस भेद होते हैं।
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