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________________ इक्कीसवां अवगाहना - संस्थान पद - विधि द्वार Jain Education International भेद से पांच प्रकार का है। पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर भी सूक्ष्म और बादर के भेद से दो प्रकार का है। उनके भी पर्याप्त और अपर्याप्त ऐसे दो भेद हैं। इसी प्रकार अप्, तेजस् वायु और वनस्पति एकेन्द्रिय औदारिक शरीर के भी चार - चार भेद होते हैं। ये सभी मिल कर एकेन्द्रिय औदारिक शरीर के बीस भेद होते हैं । इंदिय ओरालिय सरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - पज्जत्तग बेइंदिय ओरालियसरीरे य अपज्जत्तग बेइंदिय ओरालियसरीरे य । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! बेइन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! बेइन्द्रिय औदारिक शरीर दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है पर्याप्त बेइन्द्रिय औदारिक शरीर और अपर्याप्तक बेइन्द्रिय औदारिक शरीर । एवं तेइंदिया चउरिंदिया वि । भावार्थ - इसी प्रकार तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय औदारिक शरीर के भी पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो-दो प्रकार जान लेने चाहिए। विवेचन - बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय औदारिक शरीरों के भी प्रत्येक के पर्याप्तक और अपर्याप्तक भेद होने से दो-दो प्रकार कहे गये हैं। 1 पंचिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ? ३३३ गोमा ! दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे य मस्स पंचिंदिय ओरालियसरीरे य । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है तिर्यंच पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर और मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर । तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते । तं जहा जलयर तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे य थलयर तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे य खहयर तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे य । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! तिर्यंचयोनिक-पंचेन्द्रिय- औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? - 000000000 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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