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________________ ३३४ ĐỘ ĐỘC CÓ ĐÓ CÓ CÓ ĐỘ GIÓ ĐÔI CHÚT CÓ उत्तर - हे गौतम! तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर तीन प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है १. जलचर - तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर २. स्थलचर - तिर्यंच योनिकपंचेन्द्रिय-औदारिक शरीर और ३. खेचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर । जलयर तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ? गोमा ! दुवि पण्णत्ते । तंजहा - संमुच्छिम जलयर तिरिक्खजोणिय पंचिंदियओरालियसरीरे य गब्भवक्कंतिय जलयर तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरे य । - प्रज्ञापना सूत्र भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जलचर - तिर्यंचयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! जलचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार हैं सम्मूच्छिम जलचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर और गर्भज व्युत्क्रान्तिक जलचर - तिर्यंच पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर । सम्मुच्छिम जलयर तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ? - गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - पज्जत्तग सम्मुच्छिम तिरिक्ख जोणिय पंचिंदियओरालिय सरीरे य अपज्जत्तग सम्मुच्छिम तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरे य । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सम्मूच्छिम जलचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! सम्मूच्छिम जलचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - पर्याप्तक सम्मूच्छिम तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर और अपर्याप्तक-सम्मूच्छिम तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर । एवं गब्भवक्कंतिए वि । भावार्थ - इसी प्रकार गर्भज जलचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर के भी पर्याप्तक और अपर्याप्त ये दो भेद समझ लेने चाहिए। Jain Education International थलयर तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरे णं भंते! कंइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - चउप्पय थलयर तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरे य परिसप्प थलयर तिरिक्ख जोणिय पंचेंदिय ओरालिय सरीरे य । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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