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________________ : ३३२ प्रज्ञापना सूत्र एगिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते । तंजहा - पुढविकाइय एगिंदिय ओरालियसरीरे जाव वणस्सइकाइय एगिंदिय ओरालियसरीरे । - भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एकेन्द्रिय-औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! एकेन्द्रिय औदारिक शरीर पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर । पुढविकाइय एगिंदिय ओरालिय सरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - सुहुम पुढविकाइय एगिंदिय ओरालियसरीरे य बायर पुढविकाइय एगिंदिय ओरालियसरीरे य । भावार्थ- प्रश्न- हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक- एकेन्द्रिय-औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक- एकेन्द्रिय-औदारिक शरीर दो प्रकार का कहा गया है, यथासूक्ष्म पृथ्वीकायिक- एकेन्द्रिय - औदारिक शरीर और बादर पृथ्वीकायिक- एकेन्द्रिय-औदारिक शरीर । सुहुम पुढविकाइय एगिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तंजहा पज्जत्तग सुहुम पुढविकाइय एगिंदिय ओरालियसरीरे य अपज्जत्तग सुहुम पुढविकाइय एगिंदिय ओरालियसरीरे य । भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! सूक्ष्म पृथ्वीकायिक- एकेन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! सूक्ष्म पृथ्वीकायिक- एकेन्द्रिय-औदारिक शरीर दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है पर्याप्तक-सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर और अपर्याप्तक- सूक्ष्म पृथ्वीकायिक- एकेन्द्रिय - औदारिक शरीर । बायर पुढविकाइया वि एवं चेव । भावार्थ - इसी प्रकार बादर - पृथ्वीकायिक. एकेन्द्रिय औदारिक शरीर के भी पर्याप्तक और अपर्याप्तक, ये दो भेद समझ लेने चाहिए। एवं जाव वणस्सइकाइय एगिंदिय ओरालिय सरीरेत्ति । भावार्थ - इसी प्रकार अप्कायिक से लेकर यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर तक के भी सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तक के भेद से दो-दो प्रकार समझ लेने चाहिए। विवेचन - एकेन्द्रिय औदारिक शरीर पृथ्वी, अप्, तेजस, वायु और वनस्पति रूप एकेन्द्रिय के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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