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चौदहवां कषाय पद - कषाय के भेद
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कक्षाय के भेद कडणं भंते! कसाया पण्णत्ता?
गोयमा! चत्तारि कसाया पण्णत्ता। तंजहा - कोह कसाए, माण कसाए, माया कसाए, लोभ (लोह) कसाए।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! कषाय कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
उत्तर - हे गौतम! कषाय चार प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं- १. क्रोध कषाय, २. मान कषाय ३. माया कषाय और ४. लोभ कषाय।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में कषाय के चार भेद कहे गये हैं। कषाय शब्द के तीन व्युत्पत्ति परक अर्थ इस प्रकार हैं - १. "कषः संसारः तस्य आयः लाभः कषायः" - कष अर्थात् संसार उसका आयलाभ जिससे हो, वह कषाय है अर्थात् संसार परिभ्रमण का मूल कारण कषाय है।
२. 'कृष' धातु विलेखन अर्थ में आती है, उससे भी कृष को कष आदेश हो कर 'आय' प्रत्यय लगने से कषाय शब्द बनता है। जिसका अर्थ होता है -
'कृषन्ति विलिखंति कर्मरूपं क्षेत्रं सुख दुःख शस्य उत्पादयन्ति इति कषायाः' ___ - जो कर्म रूपी खेत को सुख दुःख रूपी धान्य की उपज के लिए विलेखन (कर्षण) करते हैं - जोतते हैं वे कषाय कहलाते हैं अर्थात् सुख दुःख भोगने के स्थान को 'कषाय' कहते हैं।
३. कलुष' धातु को 'कष' आदेश हो कर भी कषाय शब्द बनता है - "कलुषयन्ति शुद्ध स्वभावं संतं कर्ममलिनं कुर्वन्ति जीवमिति कषायाः" अर्थात् - स्वभाव से शुद्ध जीव को जो कलुषित अर्थात् कर्ममलिन करते हैं उन्हें कषाय कहते हैं। चारों कषायों का स्वरूप इस प्रकार है - कषाय मोहनीय कर्म के उदय से होने वाले क्रोध, मान, माया और लोभ रूप आत्मा के परिणाम विशेष जो सम्यक्त्व, देशविरति, सर्वविरति और यथाख्यात चारित्र का घात करते हैं वे कषाय कहलाते हैं।
क्रोध, मान, माया और लोभ ये चारों मोहनीय कर्म की प्रकृतियाँ हैं। 'क्रुध' धातु क्रोध करने अर्थ में आती है। "माङ्ग" धातु से मान और माया ये दोनों शब्द बने हैं तथा 'लुभ' धातु गिद्धि भाव अर्थ में आती है उससे लोभ शब्द बनता है। इन चारों का स्वरूप आगे बताया जाता है। कषाय के चार भेद इस प्रकार हैं -
१. क्रोध - क्रोध मोहनीय के उदय से होने वाला, कृत्य (करने योग्य) और अकृत्य (नहीं करने योग्य) के विवेक को हटाने वाला, प्रज्वलन स्वरूप आत्मा के परिणाम को क्रोध कहते हैं। क्रोधवश जीव किसी की बात सहन नहीं करता और बिना विचारे अपने और पराए अनिष्ट के लिए हृदय में और बाहर जलता रहता है। इसलिए क्रोध ज्वलन स्वरूप है।
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