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प्रज्ञापना सूत्र
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जो असुरकुमार पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है, क्या वह केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण प्राप्त कर सकता है?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। एवं आउ वणस्सइसु वि।
भावार्थ - इसी प्रकार अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के उत्पन्न होने तथा धर्मश्रवण के विषय में समझ लेना चाहिए।
असुरकुमारे णं भंते! असुरकुमारेहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता तेउ वाउ बेइंदिय तेइंदिय चउरिदिएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! णो इणढे समढे। अवसेसेसु पंचसु पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाइसु असुरकुमारेसु जहा णेरइओ, एवं जाव थणियकुमारा॥५६१॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! असुरकुमार, असुरकुमारों में से निकल कर क्या सीधा अनन्तर तेजस्कायिक, वायुकायिक तथा बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। अवशिष्ट पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक आदि मनुष्य वाणव्यन्तर, ज्योतिषी एवं वैमानिक इन पांचों में असुरकुमार की उत्पत्ति आदि की वक्तव्यता नैरयिक की उत्पत्ति आदि की वक्तव्यता के अनुसार समझनी चाहिए। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए।
पुढवीकाइए णं भंते! पुढवीकाइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता णेरइएसु उववज्जेजा? गोयमा! णो इणढे समढे।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिकों में से उद्वर्तन कर क्या सीधा नैरयिकों में उत्पन्न होता है?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। एवं असुरकुमारेसु वि जाव थणियकुमारेसु वि।
भावार्थ - इस प्रकार की वक्तव्यता असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक की उत्पत्ति के विषय में समझ लेना चाहिए।
पुढवीकाइए णं भंते! पुढवीकाइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता पुढवीकाइएसु उववजेजा?
गोयमा! अत्थेगइए उववज्जेजा, अत्थेगइए णो उववजेजा।
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