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________________ बीसवां अन्तक्रिया पद - उद्वर्तन द्वार recedents.........२०५ पौषधोपवास ग्रहण, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान और सिद्ध इनमें से क्या क्या प्राप्त कर सकते हैं ? इसकी चर्चा प्रस्तुत सूत्र में की गई है। णेरइए णं भंते! णेरइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता वाणमंतर जोइसिय वेमाणिएसु उववज्जेजा? गोयमा! णो इणढे समटे॥५६०॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिक जीव, नैरयिकों में से निकल कर क्या सीधा वाणव्यन्तर ज्योतिषी या वैमानिकों में उत्पन्न होता है? उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। असुरकुमारे णं भंते! असुरकुमारेहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता णेरइएसु उववजेजा? . गोयमा! णो इणटे समटे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! असुरकुमार, असुरकुमारों में से निकल कर सीधा नैरयिकों में उत्पन्न होता है? उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। . असुरकुमारे णं भंते! असुरकुमारहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता असुरकुमारेसु उववजेजा? - गोयमा! णो इणढे समढे। एवं जाव थणियकुमारेसु। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! असुरकुमार, असुरकुमारों में से निकल कर सीधा असुरकुमारों में उत्पन्न होता है? . उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों में भी असुरकुमार, असुरकुमारों में से उद्वर्तन करके सीधे उत्पन्न नहीं होते, यह समझ लेना चाहिए। असुरकुमारे णं भंते! असुरकुमारेहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता पुढविकाइएसु उववज्जेज्जा? हंता गोयमा! अत्थेगइए उववजेजा, अत्थेगइए णो उववजेजा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या असुरकुमार, असुरकुमारों में से निकल कर सीधा पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है? उत्तर - हाँ गौतम! उसमें से कोई पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होता है और कोई उत्पन्न नहीं होता। जे णं भंते! उववजेजा से णं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए? गोयमा! णो इणढे समढे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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