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________________ २८८ प्रज्ञापना सूत्र १८. सूक्ष्म द्वार सुहुमे णं भंते! सुहुमेत्ति पुच्छा? . गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो। भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! सूक्ष्म जीव कितने काल तक सूक्ष्म-पर्याय वाला लगातार रहता है ? उत्तर-हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट पृथ्वीकाल तक वह सूक्ष्म-पर्याय में रहता है। विवेचन - सूक्ष्म की उत्कृष्ट कायस्थिति पृथ्वीकाल कही गयी है। पृथ्वीकाल यानी जितनी पृथ्वीकाय की कायस्थिति है उतना काल समझना चाहिये। बायरे णं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखिज कालं जाव खेत्तओ अंगुलस्स असंखिजइभाग। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! बादर जीव कितने काल तक लगातार बादर-पर्याय में रहता है? उत्तर - हे गौतम! बादर जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक, काल से असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल तथा क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण बादर पर्याय में रहता है अर्थात् अङ्गल के असंख्यातवें भाग जितने क्षेत्र में आकाश प्रदेशों का जितना परिमाण होता है उन प्रदेशों जितने समय प्रमाण काल को 'बादर काल' कहा जाता है। अङ्गुल के असंख्यातवें भाग जितने क्षेत्र में भी असंख्यात अवसर्पिणी उत्सर्पिणी जितना काल हो जाता है। णोसुहुमणोबायरेणं पुच्छा? गोयमा! साइए अपजवसिए॥ दारं १८॥५५०॥ भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन्! नोसूक्ष्म-नोबादर कितने काल तक पूर्वोक्त पर्याय से युक्त रहता है ? उत्तर - हे गौतम! यह पर्याय सादि-अपर्यवसित है। ॥ अठारहवाँ द्वार॥ १८॥ १९. संजी द्वार सण्णी णं भंते! पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवम सयपुहुत्तं साइरेगे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! संज्ञी जीव कितने काल तक संज्ञीपर्याय में लगातार रहता है। उत्तर - हे गौतम! संज्ञी जीव जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक शतसागरोपम पृथक्त्व काल तक निरन्तर संज्ञीपर्याय में रहता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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