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________________ तेरहवाँ परिणाम पद - अजीव परिणाम प्रज्ञापना अगुरुय लहुय परिणामे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! गागारे पण्णत्ते ९ । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अगुरुलघु परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! अगुरुलघु परिणाम एक ही प्रकार का कहा गया है। विवेचन - अगुरु लघु परिणाम (न हल्का न भारी ) - चार स्पर्श वाले कर्म, मन और भाषा के द्रव्य तथा अमूर्त आकाश आदि अगुरु लघु परिणाम वाले हैं । किन्तु अष्ट स्पर्शी औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस गुरु लघु परिणाम वाले होते हैं । अभिप्राय यह है कि अमूर्त द्रव्य और चार स्पर्श वाले अगुरु लघु कहलाते हैं और आठ स्पर्श वाले गुरु लघु परिणाम वाले कहलाते हैं । सद्द परिणामे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ? गोमा ! दुवि पण्णत्ते । तंजहा - सुब्भिसद्द परिणामे य दुब्भिसद्द परिणामे य १० । से तं अजीव परिणामे ॥ ४१८ ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! शब्द परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! शब्द परिणाम दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - सुरभि (शुभमनोज्ञ) शब्द परिणाम और दुरभि (अशुभ- अमनोज्ञ) शब्द परिणाम । इस प्रकार अजीव परिणाम का वर्णन हुआ। विवेचन - शब्द परिणाम दो प्रकार का कहा है सुरभि शब्द अर्थात् शुभ शब्द और दुरंभि शब्द अर्थात् अशुभ शब्द । ॥ पण्णवणाए भगवईए तेरसमं परिणामपयं समत्तं ॥ ॥ प्रज्ञापना भगवती का तेरहवाँ परिणाम पद समाप्त ॥ Jain Education International १७ MỘT CUỘC For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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