________________
तेरहवाँ परिणाम पद - पांच स्थावरों में परिणाम
किन्तु नपुंसक वेद वाले नहीं होते हैं। शेष सारा वर्णन नैरयिकों की तरह समझना चाहिये। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक प्ररूपणा करनी चाहिये ।
. विवेचन - असुरकुमारों के परिणाम सम्बन्धी वक्तव्यता भी नैरयिकों के समान ही जाननी चाहिये परन्तु वे गति परिणाम की अपेक्षा देव गति वाले हैं और उनमें जो महान् ऋद्धि वाले (महर्द्धिक) हैं उनमें तेजोलेश्या भी होती है इसलिए कहा है 'तेउलेस्सा वि' - तेजोलेश्या वाले भी होते हैं। वेद परिणाम की अपेक्षा वे पुरुषवेदी और स्त्रीवेदी होते हैं किन्तु नपुंसक वेदी नहीं होते क्योंकि देवों में नपुंसक वेद नहीं होता है।
९
पांच स्थावरों में परिणाम
पुढवीकाइया गइ परिणामेणं तिरिय गइया, इंदिय परिणामेणं एगिंदिया, सेसं जहा णेरइयाणं, णवरं लेसापरिणामेणं तेउलेसा वि, जोग परिणामेणं कायजोगी, णाण परिणामो णत्थि अण्णाण परिणामेणं मइ अण्णाणी, सुय अण्णाणी, दंसण परिणामेणं मिच्छादिट्ठी, सेसं तं चेव ।
एवं आउ वणस्सइ काइया वि । तेऊ, वाऊ एवं चेव, णवरं लेसा परिणामेणं जहा णेरड्या ।
भावार्थ - पृथ्वीकायिक जीव गति परिणाम से तिर्यंच गति वाले, इन्द्रिय परिणाम से एकेन्द्रिय • होते हैं। शेष सारा वर्णन नैरयिकों के समान समझना चाहिये। विशेषता यह है कि लेश्या परिणाम से ये तेजोलेश्या वाले भी होते हैं। योग परिणाम से काययोगी होते हैं। इनमें ज्ञान परिणाम नहीं होता है । अज्ञान परिणाम से ये मति अज्ञानी, श्रुतअज्ञानी होते किन्तु विभंग ज्ञानी नहीं होते । दर्शन परिणाम से मिथ्या दृष्टि होते हैं। शेष सारा वर्णन पूर्वानुसार समझ लेना चाहिये ।
• इसी प्रकार अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के विषय में भी समझना चाहिये। तेजस्कायिक जीवों और वायुकायिक जीवों का वर्णन भी इसी प्रकार है किन्तु लेश्या परिणाम से नैरयिक जीवों के समान तीन लेश्याएं समझनी चाहिये।
Jain Education International
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में पांच स्थावर जीवों की परिणाम संबंधी प्ररूपणा की गई है। पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय जीवों में तेजोलेश्या भी संभव है क्योंकि इन तीनों में सौधर्म (पहला) और ईशान (दूसरा) देवलोक तक के देव आकर उत्पन्न होते हैं। इसलिए कहा है कि 'तेउलेस्सा वि'तेजोलेश्या वाले भी होते हैं। पांच स्थावर जीवों में सास्वादन सम्यक्त्व भी नहीं होती अतः उनमें ज्ञान
-
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org