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प्रज्ञापना सूत्र
णाण एवं जहेव कण्हलेस्साणं तहेव भाणियव् जाव चउहिं। एगमि णाणे होमाणे एगंमि केवलणाणे होज्जा॥५०४॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! शुक्ल लेश्या वाला जीव कितने ज्ञानों में होता है ?
उत्तर - हे गौतम! शुक्ल लेशी जीव दो, तीन, चार या एक ज्ञान में होता है। यदि दो ज्ञानों में हो तो आभिनिबोधिक ज्ञान और श्रुतज्ञान में होता है, तीन या चार ज्ञानों में हो तो जैसा कृष्ण लेश्या वालों का कथन किया था, उसी प्रकार यावत् चार ज्ञानों में होता है, यहाँ तक कहना चाहिए। यदि एक ज्ञान में हो तो एक केवलज्ञान में होता है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में कृष्ण आदि लेश्या वाले जीवों में ज्ञान की प्ररूपणा की गयी है। ...
समुच्चय लेश्या में दो ज्ञान (मतिज्ञान, श्रुतज्ञान) तीन ज्ञान (मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अवधिज्ञान या मनः पर्यवज्ञान) चार ज्ञान (मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान) अथवा एक ज्ञान (केवलज्ञान) हो सकते हैं। कृष्ण लेश्या में दो, तीन, चार ज्ञान पाये जाते हैं। नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेश्या
और पद्म लेश्या में भी दो, तीन, चार ज्ञान पाये जाते हैं। शुक्ल लेश्या में दो, तीन, चार और एक ज्ञान पाये जाते हैं। केवलज्ञान शुक्ल लेश्या वालों में ही होता है अन्य किसी में नहीं। यह अन्य लेश्या वालों से शुक्ल लेश्या वाले की विशेषता है।
शंका - मनःपर्यवज्ञान तो अतिविशुद्ध परिणाम वाले अप्रमत्त संयत को उत्पन्न होता है जबकि कृष्ण लेश्या संक्लेशमय परिणाम रूप होती है अतः कृष्ण लेश्या वाले जीव में मनःपर्यवज्ञान कैसे हो . सकता है ? - समाधान - प्रत्येक लेश्या के अध्यवसाय स्थान असंख्यात लोकाकाश प्रदेश जितने हैं। उनमें से कोई कोई मन्द अनुभाव वाले अध्यवसाय स्थान होते हैं जो प्रमत्त संयत में पाए जाते हैं। यद्यपि मनः पर्यवज्ञान अप्रमत्त संयत को ही उत्पन्न होता है परन्तु उत्पन्न होने के बाद वह प्रमत्त दशा में भी रहता है इस अपेक्षा से कृष्ण लेश्या वाला जीव भी मनःपर्यवज्ञानी हो सकता है।
॥पण्णवणाए भगवईए सत्तरसमे लेस्सापए तइओ उद्देसओ समत्तो॥ ॥ प्रज्ञापना भगवती सूत्र के सत्तरहवें लेश्यापद का तृतीय उद्देशक समाप्त॥
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