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________________ लेस्सापए चउत्थो उद्देसओ लेश्या पद का चतुर्थ उद्देशक लेश्या पद के चतुर्थ उद्देशक के प्रारंभ में अधिकार प्रतिपादक गाथा इस प्रकार है - परिणाम वण्ण रस गंध सुद्ध अपसत्थ संकिलिगुण्हा । गइ परिणाम पएसोगाढ वग्गण ठाणाणमप्पबहुं ॥ १ ॥ भावार्थ - १. परिणाम २. वर्ण, ३. रस ४. गन्ध ५. शुद्ध ( और अशुद्ध) ६. प्रशस्त (और अप्रशस्त) ७. संक्लिष्ट (और असंक्लिष्ट ) ८. उष्ण ( और शीत) ९. गति १०. परिणाम ११. प्रदेश १२. अवगाढ १३. वर्गणा १४. स्थान (प्ररूपणा) और १५. अल्पबहुत्व, ये पन्द्रह अधिकार चतुर्थ उद्देशक में कहे जाएंगे। . १. परिणाम द्वार कई णं भंते! लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ। तंजहा- कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! लेश्याएँ कितनी प्रकार की होती हैं ? उत्तर - हे गौतम! लेश्याएँ छह प्रकार की होती हैं, वे इस प्रकार हैं- कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या । भंते! कहलेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो - भुज्जो परिणमइ ? हंता गोयमा ! कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमइ । सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ - ' कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमइ ?' गोयमा! से जहा णामए खीरे दूसिं पप्प, सुद्धे वा वत्थे रागं पप्प तारूवत्ताए जाव ताफासत्ता भुज्जो - भुज्जो परिणम । से तेणणं गोयमा ! एवं वुच्चइ - ' कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो - भुज्जो परिणमइ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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