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सत्तरहवाँ लेश्या पद-तृतीय उद्देशक - कृष्ण आदि लेश्या वाले जीवो.....
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हे भगवन् ! क्या नील लेश्या वाले दो नैरयिक अवधिज्ञान से समान जानते हैं, समान देखते हैं?
हे गौतम! समान जानते हैं समान देखते हैं और विषम भी जानते हैं और विषम भी देखते हैं, जैसे एक पुरुष पर्वत पर खड़ा होकर देखता है और एक पुरुष पर्वत पर पैर ऊँचे करके देखता है। इन दोनों के देखने में जिस तरह अन्तर पड़ता है, इसी तरह नील लेश्या वाले दो नैरयिकों में भी आपस में अवधिज्ञान से जानने देखने में अन्तर पड़ता है। विशुद्ध लेश्या वाले की अपेक्षा अविशुद्ध लेश्या वाला कम जानता देखता है और अविशुद्ध लेश्या वाले की अपेक्षा विशुद्ध लेश्या वाला अधिक जानता देखता है। इसी तरह कापोत लेश्या वाला नैरयिक नील लेश्या वाले नैरयिक की अपेक्षा अवधिज्ञान से अधिक एवं विशुद्धतर जानता देखता है। जैसे एक पुरुष पर्वत पर खड़ा होकर देखता है और एक पुरुष पर्वतस्थ (पर्वत पर रहे हुए) वृक्ष पर खड़ा होकर देखता है। इन दोनों में पर्वतस्थ वृक्ष पर खड़ा होकर देखने । वाला पुरुष दूसरे की अपेक्षा अधिक और स्पष्ट देखता है। इसी तरह कापोत लेश्या वाला नैरयिक भी । नील लेश्या वाले नैरयिक की अपेक्षा विशेष एवं विशुद्धतर जानता देखता है।
कृष्ण आदि लेश्या वाले जीवों में ज्ञान-प्ररूपणा कण्हलेस्से णं भंते! जीवे कइसु णाणेसु होजा? ... गोयमा! दोसु वा तिसु वा चउसु वा णाणेसु होजा, दोसु होमाणे आभिणिबोहिय सुयणाणे होजा, तिसु होमाणे आभिणिबोहिय सुयणाण ओहिणाणेसु होजा, अहवा तिसु होमाणे आभिणिबोहिय सुयणाण मणपजवणाणेसु होजा, चउसु होमाणे आभिणिबोहिय सुय ओहि मणपजवणाणेसु होजा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कृष्ण लेश्या वाला जीव कितने ज्ञानों में होता है?
उत्तर - हे गौतम! कृष्ण लेश्या वाला जीव दो, तीन अथवा चार ज्ञानों में होता है। यदि दो ज्ञानों में हो तो आभिनिबोधिक ज्ञान और श्रुतज्ञान में होता है, तीन ज्ञानों में हो तो आभिनिबोधिक, श्रुत और अवधिज्ञान में होता है अथवा तीन ज्ञानों में हो तो आभिनिबोधिक, श्रुतज्ञान और मनःपर्यवज्ञान में होता है और चार ज्ञानों में हो तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान में होता है। __एवं जाव पम्हलेस्से। - भावार्थ - इसी प्रकार नील, कापोत और तेजो लेश्या यावत् पद्म लेश्या वाले जीव में पूर्वोक्त सूत्रानुसार ज्ञानों की प्ररूपणा समझ लेनी चाहिए।
सुक्कलेस्से णं भंते! जीवे कइसु णाणेसु होजा? गोयमा! दोसु वा तिसु वा चउसु वा एगम्मि वा होजा, दोसु होमाणे आभिणिबोहिय
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