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________________ लेस्सापए तइओ उद्देसओ सत्तरहवाँ लेश्या पद-तृतीय उद्देशक चौबीस दण्डक के जीवों में उत्पाद णेरइए णं भंते! णेरइएसु उववज्जइ, अणेरइए णेरइएसु उववजइ? . गोयमा! णेरइए णेरइएसु उववजइ, णो अणेरइए णेरइएसु उववजइ। . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिक नैरयिकों में उत्पन्न होता है, अथवा अनैरयिक (नैरयिव सिवाय) नैरयिकों में उत्पन्न होता है? उत्तर - हे गौतम! नैरयिक नैरयिकों में उत्पन्न होता है, अनैरयिक नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होता है। एवं जाव वेमाणियाणं। . भावार्थ - इसी प्रकार असुरकुमार आदि भवनपतियों से लेकर यावन् वैमानिकों की उत्पत्ति सम्बन्धी वक्तव्यता कहनी चाहिए। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चौबीस दण्डकों के जीवों के उत्पाद के विषय में कथन किया गया है। नैरयिक ही नैरयिकों में उत्पन्न होता है अनैरयिक नहीं, क्योंकि नैरयिक भवोपग्राहक आयु ही भव का कारण है अतः जब नरकायु का उदय होता है तभी नरक भव होता है। इसलिये ऋजुसूत्र नय की दृष्टि से नरकायु आदि के वेदन के प्रथम समय में ही नैरयिक आदि संज्ञा का व्यवहार होने लगता है। नैरयिक ही नरक में उत्पन्न होता है इसके अलावा अन्य नहीं। नैरयिक के समान ही शेष २३ दण्डकों के उत्पाद के विषय में समझ लेना चाहिए। .. चौबीस दण्डक के जीवों में उद्वर्तन णेरइए णं भंते! णेरइएहितो उववट्टइ, अणेरइए णेरइएहितो उववट्टइ? गोयमा! अणेरइए णेरइएहितो उववट्टइ, णो णेरइए णेरइएहितो उववट्टइ। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिक नैरयिकों से उद्वर्तन करता (निकलता) है, अथवा अनैरयिक (नैरयिक से भिन्न) नैरयिकों से उद्वर्तन करता है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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