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सत्तरहवाँ लेश्या पद-तृतीय उद्देशक - सलेशी जीवों में उत्पाद-उद्वर्तन
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उत्तर - हे गौतम! अनैरयिक नैरयिकों से उद्वर्तन करता है , किन्तु नैरयिक नैरयिकों से उद्वर्तन नहीं करता है।
एवं जाव वेमाणिए, णवरं जोइसिय-वेमाणिएसु'चयणं' ति अभिलावो कायव्वो ॥५००॥
भावार्थ - इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक उद्वर्तन सम्बन्धी कथन करना चाहिए। विशेषता यह है कि ज्योतिषी और वैमानिकों के विषय में उद्वर्तन के स्थान में 'च्यवन' शब्द का प्रयोग करना चाहिए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चौबीस दण्डकवर्ती जीवों के उद्वर्तन विषयक प्ररूपणा की गयी है। नैरयिक से भिन्न (अनैरयिक) नरक भव से उद्वर्तन करता है-निकलता है। इसका आशय यह है कि जब तक किसी जीव के नरकायु का उदय बना हुआ है तब तक वह नैरयिक कहलाता है और जब नरकायु का उदय नहीं रहता तब वह अनैरयिक कहलाता है। अनैरयिक ही नरक से निकलता है नैरयिक नहीं। निष्कर्ष यह है कि आगामी भव की आयु का उदय होने पर जीव वर्तमान भव से उद्वर्तन होता (निकलता) है और जिस भव संबंधी आयु का उदय हो उसी नाम से उसका व्यवहार होता है। जैसे नरकायुष्य का उदय होने पर 'यह नैरयिक है' ऐसा व्यवहार होता है। अत: नैरयिकों से अनैरयिक ही उद्वर्त्तता है किन्तु नैरयिक नहीं उद्वर्त्तता। जैसे कैद (जेल) में कैदी (अपराधी) ही जाता है। कैद का समय पूर्ण हो जाने पर कैद से मुक्त होने के समय वह अकैदी हो जाता है। अतः कैद से जाते समय वह अकैदी रूप बाहर निकलता है। कैद में रहते हुए जब तक अपराध की सजा का भुगतान करता है तब तक ही वह कैदी गिना जाता है। सजा पूर्ण होते ही वह अकैदी हो जाता है। इसी तरह यहाँ पर समझना चाहिए। इसी प्रकार असुरकुमार आदि शेष २३ दण्डकों के उद्वर्तन के विषय में समझ लेना चाहिये। ज्योतिषियों और वैमानिकों में 'उद्वर्तन' के स्थान पर 'च्यवन' कहना चाहिए। .
सलेशी जीवों में उत्पाद-उद्वर्तन से णूणं भंते! कण्हलेस्से णेरइए कण्हलेस्सेसु णेरइएसु उववजइ, कण्हलेस्से उववट्टइ, जल्लेस्से उववजइ तल्लेस्से उववट्टइ?
हंता गोयमा! कण्हलेस्से णेरइए कण्हलेस्सेसु णेरइएसु उववजइ, कण्हलेस्से उववट्टइ, जल्लेस्से उववजइ तल्लेस्से उववट्टइ।
कठिन शब्दार्थ - जल्लेस्से - जिस लेश्या में, तल्लेसे - उस लेश्या में। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! क्या कृष्ण लेश्या वाला नैरयिक कृष्ण लेश्या वाले नैरयिकों में ही
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