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________________ १७० प्रज्ञापना सूत्र उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े जीव शुक्ल लेश्या वाले हैं, उनसे पद्म लेश्या वाले संख्यात गुणा हैं, उनसे तेजो लेश्या वाले संख्यात गुणा हैं, उनसे अलेश्य अनन्त गुणा हैं, उनसे कापोत लेश्या वाले अनन्त गुणा हैं, उनसे नील लेश्या वाले विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्ण लेश्या वाले विशेषाधिक हैं और सलेश्य उनसे भी विशेषाधिक हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सलेशी और अलेशी जीवों के अल्पबहुत्व का कथन किया गया है जो इस प्रकार हैं - सबसे थोड़े जीव शुक्ल लेश्या वाले हैं क्योंकि कितनेक तिर्यंच पंचेन्द्रियों, मनुष्यों और लान्तक देवलोक आदि के देवों में शुक्ल लेश्या पायी जाती है। उनसे पद्म लेश्या वाले जीव संख्यात गुणा हैं क्योंकि संख्यात गुणा तिर्यंच पंचेन्द्रियों, मनुष्यों, सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक कल्पवासी देवों में पद्म लेश्या होती है। उनसे तेजो लेश्या वाले जीव संख्यात गुणा हैं क्योंकि बादर पृथ्वीकाय, अप्काय और प्रत्येक वनस्पतिकाय में तथा संख्यात गुणा तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्यों एवं भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषियों, पहले दूसरे देवलोक के देवों में तेजो लेश्या होती है। उनसे अलेशी-लेश्या रहित जीव अनंत गुणा हैं क्योंकि सिद्ध भगवान् अनन्त गुणा हैं। उनसे भी कापोत लेश्या वाले अनन्त गुणा हैं क्योंकि सिद्धों से भी कापोत लेशी वनस्पतिकायिक जीव अनन्त गुणा हैं। उनसे भी नील लेश्या वाले विशेषाधिक हैं। उनसे कृष्ण लेश्या वाले विशेषाधिक हैं क्योंकि क्लिष्ट, क्लिष्टतर अध्यवसाय वाले जीव अपेक्षाकृत अधिक होते हैं। उनसे भी सलेशी-लेश्या वाले जीव विशेषाधिक हैं क्योंकि उनमें नील लेश्या वाले आदि जीवों का भी समावेश है। विविध लेश्या वाले चौबीस दण्डक के जीवों का अल्पबहुत्व एएसि णं भंते! णेरइयाणं कण्हलेस्साणं णीललेस्साणं काउलेस्साण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा णेरड्या कण्हलेस्सा, णीललेस्सा असंखिज्ज गुणा, काउलेस्सा असंखिज गुणा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या वाले नैरयिकों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े कृष्ण लेश्या वाले नैरयिक हैं, उनसे असंख्यात गुणा नील लेश्या वाले हैं और उनसे भी असंख्यात गुणा कापोत लेश्या वाले हैं। विवेचन - नैरयिकों में कृष्ण, नील और कापोत ये तीन लेश्याएं पाई जाती हैं। पहले की दो नरक पृथ्वियों में कापोत लेश्या, तीसरी नरक पृथ्वी में मिश्र-कापोत और नील, चौथी में नील, पांचवीं में मिश्र-नील और कृष्ण, छठी में कृष्ण और सातवीं नरक पृथ्वी में परम कृष्ण लेश्या होती है। प्रस्तुत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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