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________________ सत्तरहवाँ लेश्या पद-द्वितीय उद्देशक - विविध लेश्या वाले चौबीस..... १७१ सूत्र में नैरयिकों में तीन लेश्याओं का अल्पबहुत्व कहा है जो इस प्रकार है सबसे थोड़े कृष्ण लेश्या वाले नैरयिक हैं क्योंकि कितनेक पांचवीं पृथ्वी के नरकावासों में तथा छठी और सातवीं नरक पृथ्वी में कृष्ण लेश्या होती है। उनसे नील लेश्या वाले असंख्यात गुणा हैं क्योंकि कितनेक तीसरी पृथ्वी के नरकावासों में, संपूर्ण चौथी नरक पृथ्वी में और पांचवीं नरक पृथ्वी के कितनेक नरकावासों में पूर्वोक्त से असंख्यात गुणा नैरयिकों में नील लेश्या होती है। उनसे असंख्यात गुणा कापोत लेश्या वाले हैं क्योंकि पहली और दूसरी नरक पृथ्वी में तथा तीसरी नरक पृथ्वी के कितनेक नरकावासों में पूर्वोक्त नैरयिकों से असंख्यात गुणा नैरयिकों में कापोत लेश्या होती है। एएसि णं भंते! तिरिक्ख जोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा तिरिक्ख जोणिया सुक्कलेस्सा, एवं जहा ओहिया णवरं अलेस्स वज्जा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन कृष्ण लेश्या से लेकर शुक्ल लेश्या वाले तिर्यंच योनिकों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे कम तिर्यंच शुक्ल लेश्या वाले हैं, इत्यादि जिस प्रकार औधिक (समुच्चय) का कथन किया है उसी प्रकार यहाँ भी समझ लेना चाहिए, विशेषता यह है कि तिर्यंचों में अलेश्य नहीं कहना चाहिए। क्योंकि उनमें अलेश्य होना संभव नहीं है। विवेचन - तियेच योनिकों का अल्पबहुत्व औधिक-सामान्य लेश्या वाले जीवों के अल्प बहुत्व के अनुसार समझना चाहिये परन्तु विशेषता यह है कि यहाँ अलेश्य-लेश्या रहित का कथन नहीं करना चाहिए क्योंकि तिर्यंचों में लेश्या रहित होना असंभव है। तिर्यंच जीवों की अल्पबहुत्व इस प्रकार हैं - सबसे थोड़े शुक्ल लेश्या वाले तिर्यंच हैं। उनसे संख्यात गुणा पद्म लेश्या वाले हैं। उनसे संख्यात गुणा तेजो लेश्या वाले हैं। उनसे अनंत गुणा कापोत लेश्या वाले हैं। उनसे नील लेश्या वाले विशेषाधिक हैं। उनसे भी कृष्ण लेश्या वाले विशेषाधिक हैं और उनसे भी सलेश्य-लेश्या सहित विशेषाधिक हैं। एएसिणं भंते! एगिंदियाणं कण्हलेस्साणं णीललेस्साणं काउलेस्साणं तेउलेस्साण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा एगिंदिया तेउलेस्सा, काउलेस्सा अणंत गुणा, णीललेस्सा । विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कृष्ण लेश्या से लेकर तेजो लेश्या तक के एकेन्द्रियों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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