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प्रज्ञापना सूत्र
भावार्थ - इसी प्रकार ज्योतिषी और वैमानिक देवों के आहारादि के विषय में भी कहना चाहिए। विशेषता यह है कि वेदना की अपेक्षा वे दो प्रकार के कहे गए हैं, वे इस प्रकार हैं - मायीमिथ्यादृष्टिउपपन्नक और अमायी-सम्यग्दृष्टि-उपपन्नक। उनमें जो मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक हैं वे अल्पतर वेदना वाले हैं और जो अमायी-सम्यग्दृष्टि-उपपन्नक हैं, वे महावेदना वाले हैं। इसी कारण हे गौतम ! सब वैमानिक समान वेदना वाले नहीं हैं। शेष आहार, वर्ण, कर्म आदि संबंधी सारा कथन असुरकुमारों और वाणव्यंतरों के समान समझ लेना चाहिए। . विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों की आहार आदि विषयक प्ररूपणा की गयी है। असुरकुमार के वर्णन के समान ही वाणव्यंतर देवों के विषय में समझ लेना चाहिये। ज्योतिषी और वैमानिक देवों में असंज्ञीभूत और संज्ञीभूत के स्थान पर मायी मिथ्यादृष्टि उपपत्रक और अमायी सम्यग्दृष्टि उपपन्नक कहना चाहिये क्योंकि भगवती सूत्र शतक १ उद्देशक २ में कहा है - "असण्णीणं जहण्णेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं वाणमंतरेसु" अर्थात् - असंज्ञी जीवों की उत्पत्ति देवगति में हो तो जघन्य भवनवासियों में और उत्कृष्ट वाणव्यन्तरों में होती है यानी ज्योतिषी और वैमानिक में असंज्ञी जीव उत्पन्न नहीं होते हैं। शेष सारी वक्तव्यता असुरकुमारों के समान ही समझ लेना चाहिये।
सलेशी चौबीस दण्डकों में सप्त द्वार सलेस्सा णं भंते! णेरइया सव्वे समाहारा, समसरीरा, समुस्सास णिस्सासा-सव्वे वि पुच्छा।
गोयमा! एवं जहा ओहिओ गमओ तहा सलेस्सा गमओ विणिरवसेसो भाणियव्वो जाव वेमाणिया।
कठिन शब्दार्थ - सलेस्सा-सलेश्य-लेश्या सहित-लेश्या वाले।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या सलेश्य सभी नैरयिक समान आहार वाले, समान शरीर वाले और समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले होते हैं ? इसी प्रकार आगे के द्वारों के विषय में भी वही पूर्ववत् पृच्छा की गई है? .. उत्तर - हे गौतम! इस प्रकार जैसे सामान्य समुच्चय नैरयिकों का-औधिक गम (अभिलाप) कहा गया है, उसी प्रकार सभी सलेश्य नैरयिकों के सात द्वारों के विषय का समस्त गम यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सलेश्य-लेश्या वाले नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त चौबीस दण्डकों के जीवों की आहार आदि सात द्वारों के विषय में प्ररूपणा की गयी है।
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