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________________ सोलहवां प्रयोग पद - गति प्रपात के भेद-प्रभेद लेसाणुवाय गई १२, उद्दिस्सपविभत्त गई १३, चउपुरिसपविभत्त गई १४, वंक गई १५, पंक गई १६, बंधणविमोयण गई १७ ॥ ५७३ ॥ - भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! विहायोगति कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! विहायो गति सतरह प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार हैं १. स्पृशद् गत २. अस्पृशद् गति ३. उपसम्पद्यमान गति ४. अनुपसम्पद्यमान गति ५. पुद्गल गति ६. मण्डूक गति ७. नौका गति ८. नय गति ९. छाया गति १०. छायानुपात गति ११. लेश्या गति १२. लेश्यानुपात गति १३. उद्दिश्यप्रविभक्त गति १४. चतुः पुरुषप्रविभक्त गति १५. वक्र गति १६. पंक गति और १७. बन्धनविमोचन गति । से किं तं समा गई ? १३७ फुसमाणगई जण्णं परमाणुपोग्गले दुपएसिय जाव अनंत पएसियाणं खंधाणं अण्णमण्णं फुसित्ताणं गई पवत्तइ, से त्तं फुसमाण गई १ । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वह स्पृशद् गति क्या है ? उत्तर - हे गौतम! परमाणु पुद्गल की तथा द्विप्रदेशी से लेकर यावत् त्रिप्रदेशी, चतुः प्रदेशी, पंचप्रदेशी, षट्प्रदेशी, सप्तप्रदेशी, अष्टप्रदेशी, नवप्रदेशी, दशप्रदेशी, संख्यातप्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी, अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की एक दूसरे को स्पर्श करते हुए जो गति होती है, वह स्पृशद्गति कहलाती है । यह स्पृशद्गति का वर्णन हुआ। से किं तं अफुसमा गई ? अफुसमाण गई जणं एएसिं चेव अफुसित्ता णं गई पवत्तइ, से तं अफुसमाण ई २ | भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अस्पृशद् गति किसे कहते हैं ? उत्तर - हे गौतम! उन्हीं पूर्वोक्त परमाणु पुद्गलों से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कन्धों की परस्पर स्पर्श किये बिना ही जो गति होती है, वह अस्पृशद्गति कहलाती है । यह अस्पृशद् गति का स्वरूप हुआ। से किं तं उवसंपज्जमाण गई ? उवसंपजमाण गई जण्णं रायं वा जुवरायं वा ईसरं वा तलवरं वा माडंबियं वा कोडुंबियं वा इब्धं वा सेट्ठि वा सेणावई वा सत्थवाहं वा उवसंपज्जित्ता णं गच्छइ, से तं उवसंपज्जमा गई ३ | Jain Education International भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वह उपसम्पद्यमानगति क्या है ? उत्तर - हे गौतम! उपसम्पद्यमानगति वह है, जिसमें व्यक्ति राजा, युवराज (राज्य का उत्तराधिकारी), For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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