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________________ १३६ प्रज्ञापना सूत्र सिद्ध नोभवोपपात गति का निरूपण हुआ। इसके साथ ही उक्त सिद्ध नोभवोपपात गति का वर्णन हुआ। तदनुसार पूर्वोक्त नोभवोपपात गति की प्ररूपणा समाप्त हुई। इस के साथ ही उपपात गति का वर्णन पूर्ण हुआ। विवेचन - भव उपपात गति के मूल भेद चार और मूल भेद सहित उत्तर भेद २२ हैं। भव उपपात गति के मूल भेद चार-नरक भव उपपात गति, तिर्यंच भव उपपात गति, मनुष्य भव उपपात गति और देव भव उपपात गति। नरक भव उपपात गति के सात भेद-रत्नप्रभा नरक भव उपपात गति यावत् तमस्तमः प्रभा नरक भव उपपात गति। तिर्यंच भव उपपात गति के पांच भेद-एकेन्द्रिय तिर्यंच भव . उपपात गति यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंच भव उपपात गति। मनुष्य भव उपपात गति के दो भेद-सम्मूच्छिम मनुष्य भव उपपात गति, गर्भज मनुष्य भव उपपात गति। देवभव उपपात गति के चार भेद-भक्नपति देव भव उपपात गति यावत् वैमानिक देव भव उपपात गति। नो भव उपपात गति के दो भेद - १. पुद्गल नो भव उपपात गति और २. सिद्ध नो भव उपपात गति। कर्म संबंध से प्राप्त नैरयिक आदि भव के सिवाय जो उपपात गति है वह नो भव उपपात गति होती है। यह गति पुद्गल एवं सिद्धों के होती है इसलिए पुद्गल और सिद्ध के भेद से इसके दो भेद बताये हैं। पुद्गल नो भव उपपात गति के छह भेद-परमाणु पुद्गल १ लोक के पूर्व चरमान्त से पश्चिम के चरमान्त तक एक समय में जाता है २. पश्चिम चरमान्त से पूर्व चरमान्त तक एक समय में जाता है ३. उत्तर चरमान्त से दक्षिण चरमान्त तक एक समय में जाता है ४. दक्षिण चरमान्त से उत्तर चरमान्त तक एक समय में जाता है ५ ऊर्ध्व लोक के चरमान्त से अधोलोक के चरमान्त तक एक समय में जाता है, ६ अधोलोक के चरमान्त से ऊर्ध्व लोक के चरमान्त तक एक समय में जाता है। सिद्ध नो भव उपपात गति के दो भेद-अनन्तर सिद्ध नो भव उपपात गति और परम्पर सिद्ध नो भव उपपात गति। अनन्तर सिद्ध नो भव उपपात गति के तीर्थ सिद्ध, अतीर्थ सिद्ध यावत् अनेक सिद्ध के भेद से पन्द्रह भेद होते हैं। परम्पर सिद्ध नो भव उपपात गति के अप्रथम समय सिद्ध, दो समय सिद्ध यावत् दस समय सिद्ध, संख्यातं समय सिद्ध असंख्यात समय सिद्ध और अनन्त समय सिद्ध-ये तेरह भेद होते हैं। से किं तं विहाय गई?. विहाय गई सत्तरस विहा पण्णत्ता। तंजहा - फुसमाण गई १, अफुसमाण गई २, उवसंपजमाण गई ३, अणुवसंपज्जमाण गई ४, पोग्गल गई ५, मंडूय गई ६, णावा गई ७, णय गई ८, छाया गई ९, छायाणुवाय गई १०, लेसा गई ११, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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