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________________ १३८ प्रज्ञापना सूत्र ईश्वर ऐश्वर्यशाली, तलवर (किसी नृप द्वारा नियुक्त पट्टधर शासक), माडम्बिक (मण्डलाधिपति) कुटुम्ब का अधिपति, इभ्य (धनाढ्य) सेठ सेनापति या सार्थवाह को आश्रय करके उनके सहयोग या सहारे से गमन करता हो। यह उपसम्पद्यमानगति का स्वरूप हुआ। विवेचन - उपसम्पद्यमान गति में आचार्य आदि की आज्ञा में विचरना उनकी नेश्राय स्वीकार करके रहना आदि समझा जाता है। . से किं तं अणुवसंपजमाण गई? अणुवसंपजमाण गई जण्णं एएसिं चेव अण्णमण्णं अणुवसंपजित्ता णं गच्छइ, से तं अणुवसंपजमाण गई ४। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वह अनुपसम्पद्यमान गति क्या है ? उत्तर - हे गौतम! इन्हीं पूर्वोक्त राजा आदि का परस्पर आश्रय न लेकर जो गति होती है, वह अनुपसम्पद्यमान गति कहलाती है। यह अनुपसम्पद्यमान गति का स्वरूप हुआ। से किं तं पोग्गल गई? पोग्गल गई जं णं परमाणु पोग्गलाणं जाव अणंत पएसियाणं खंधाणं गई । पवत्तइ, से तं पोग्गल गई ५। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पुद्गल गति क्या है ? उत्तर.- हे गौतम! परमाणु पुद्गलों की यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की गति पुद्गल गति कहलाती है। यह पुद्गल गति का स्वरूप हुआ। से किं तं मंडूय गई? मंडूयगई जण्णं मंडूओ फिडित्ता (उप्फिडिया उप्किडिया) गच्छइ, से तं मंडूय गई। कठिन शब्दार्थ - फिडित्ता ( उफ्फिडिया उप्फिडिया) - फुदक कर। . . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मण्डूक गति का क्या स्वरूप है ? उत्तर - हे गौतम! मेंढ़क जो उछल-उछल कर गति करता है, वह मण्डूक गति कहलाती है। यह मण्डूक गति का स्वरूप हुआ। से किं तं णावा गई? णावा गई जणणं णावा पुव्ववेयालीओ दाहिणवेयालिं जलपहेणं गच्छइ, दाहिण वेयालीओ वा अवरवेयालिं जलपहेणं गच्छइ, से तं णावा गई ७। कठिन शब्दार्थ - पुव्ववेयालीओ - पूर्व वैताली (तट) से, जलपहेणं - जल मार्ग से। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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