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________________ १३० प्रज्ञापना सूत्र उत्तर - हे गौतम! बन्धन छेदन गति वह है, जिसके द्वारा जीव शरीर से बन्धन तोड़ कर बाहर निकालता है अथवा शरीर जीव से पृथक् होता है। यह बन्धन छेदन गति का निरूपण हुआ । विवेचन - बन्धन के छेदन से जो गति होती है वह बन्धन छेदन गति है । जीव से मुक्त शरीर और शरीर से पृथक् हुए जीव की बन्धन छेदन गति होती है। से किं तं उववाय गई ? उववायगई तिविहा पण्णत्ता । तं जहा खेत्तोववाय गई, भवोववाय गई, ÖÖHÖHÖN ÖHÖN ÖLÜN ÖHỘ00000000 णोभवोववाय गई। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उपपात गति कितने प्रकार की कही गयी है ? उत्तर - हे गौतम! उपपात गति तीन प्रकार की कही गई हैं, वह इस प्रकार हैं - १. क्षेत्रोपपात गति २, भवोपपात गति और ३ नोभवोपपात गति । विवेचन - उपपात का अर्थ है प्रादुर्भाव, उत्पत्ति । क्षेत्र, भव और नोभव के भेद से उपपात तीन प्रकार का कहा गया है। क्षेत्र का अर्थ है - आकाश - जहाँ नैरयिक आदि जीव, सिद्ध और पुद्गल रहते हैं । भव का अर्थ है - कर्म के संबंध से उत्पन्न जीव की नैरयिक आदि पर्याय । क्योंकि 'भवन्ति अस्मिन्'- जिसमें कर्म के वश हुए प्राणी उत्पन्न होते हैं वह भव है । नो भव अर्थात् भव रहित यानी कर्म संबंध से प्राप्त नैरयिक आदि पर्याय से रहित पुद्गल अथवा सिद्ध नो भव है। उपपात रूप गति उपपात गति कहलाती है। से किं तं खेत्तोववाय गई ? खेत्तोववाय गई पंचविहा पण्णत्ता । तंजहा - णेरइय खेत्तोववाय गई १, तिरिक्ख जोणिय खेत्तोववाय गई २, मणूस खेत्तोववाय गई ३, देव खेत्तोववाय गई ४, सिद्ध खेत्तोववाय गई ५ । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! क्षेत्रोपपात गति कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! क्षेत्रोपपात गति पांच प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है - १. नैरयिक क्षेत्रोपपात गति २. तिर्यंच योनिक क्षेत्रोपपात गति ३. मनुष्य क्षेत्रोपपात गति ४. देव क्षेत्रोपपात गति और ५. सिद्ध क्षेत्रोपपात गति । Jain Education International से किं तं रइय खेत्तोववाय गई ? णेरड्य खेत्तोववाय गई सत्तविहा पण्णत्ता । तंजहा - रयणप्पभा पुढवि णेरड्य खेत्तोववाय गई जाव अहेसत्तमा पुढवि णेरइय खेत्तोववाय गई। से त्तं णेरइय खेत्तोववाय गई १ । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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