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प्रज्ञापना सूत्र
असंख्यात, अनन्त हाँगी। एक-एक सी मनुष्य ने पांच अनुत्तर विमान के सिवाय शेष सभी स्थानों में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में किसी के होंगी, किसी के नहीं होंगी, जिसके होंगी उसके एकेन्द्रिय में १, २, ३, बेइन्द्रिय में २, ४, ६, तेइन्द्रिय में ३, ६, ९ चउरिन्द्रिय में ४, ८, १२ और पंचेन्द्रिय में ५, १०, १५ यावत् संख्यात असंख्यात अनन्त होंगी। एक-एक संज्ञी मनुष्य ने पांच अनुत्तर विमान के देव रूप में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में किसी ने की, किसी ने नहीं की, जिसने की उसने चार अनुत्तर विमान के देव रूप में पांच अथवा दस और सर्वार्थसिद्ध के देव रूप में पांच की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में अतीत काल की तरह कहना चाहिए।
... अनेक जीवों में परस्पर की अपेक्षा ...
बहुत से नारकी के नैरयिकों ने पांच अनुत्तर विमान के सिवाय शेष सभी स्थानों में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में स्वस्थान की अपेक्षा असंख्यात हैं परस्थान की अपेक्षा नहीं हैं और भविष्य में अनन्त होंगी। बहुत से नारकी के नैरयिकों ने पांच अनुत्तर विमान के देव रूप में, भावेन्द्रियाँ अतीत काल में नहीं की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में असंख्यात होंगी। भवनपति, ' वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, असंज्ञी तियेच पंचेन्द्रिय, संज्ञी तियेच पंचेन्द्रिय . और असंज्ञी मनुष्य के भावेन्द्रियाँ नारकी के नैरयिकों की तरह कहना चाहिए। इतनी विशेषता है कि, वनस्पति के जीवों में वर्तमान में स्वस्थान की अपेक्षा अनंत तथा पांच अनुत्तर विमान की अपेक्षा भविष्या में भावेन्द्रियाँ अनन्त कहनी चाहिए।
बहुत संज्ञी मनुष्यों ने संज्ञी मनुष्य रूप में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में संख्यात हैं और भविष्य में अनन्त होंगी। बहुत संज्ञी मनुष्यों ने पांच अनुतर विमान के सिवाय शेष सभी स्थानों में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में अनन्त होंगी। बहुत .. संज्ञी मनुष्यों ने पांच अनुत्तर विमान के देव रूप में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में संख्यात की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में संख्यात होंगी।
पहले देवलोक से लेकर नवग्रैवेयक तक के बहुत देवों ने नारकी से लेकर नवनैवेयक तक के देव रूप में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान काल में स्वस्थान की अपेक्षा असंख्यात भावेन्द्रियाँ हैं पर स्थान की अपेक्षा नहीं हैं और भविष्य में अनन्त होंगी। पहले देवलोक से लेकर नवग्रैवेयक तक के बहुत देवों ने पांच अनुत्तर विमान के देव रूप में भावेन्द्रियाँ अतीतकाल में चार अनुत्तर विमान के देव रूप में असंख्यात की, सर्वार्थसिद्ध के देव रूप में नहीं की, वर्तमान में नहीं है और भविष्य में पांचों अनुत्तर विमान के देव रूप में असंख्यात होंगी।
चार अनुत्तर विमान के बहुत देवों ने स्वस्थान की अपेक्षा भावेन्द्रियाँ अतीत काल में असंख्यात
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