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पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-द्वितीय उद्देशक - एक जीव में परस्पर की अपेक्षा
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एकेन्द्रिय में १, २, ३, बेइन्द्रिय में २, ४, ६, तेइन्द्रिय में ३, ६, ९, चउरिन्द्रिय में ४, ८, १२ और पंचेन्द्रिय में ५, १०, १५ यावत् संख्यात असंख्यात अनन्त होंगी। पहले देवलोक से लेकर नवग्रैवेयक तक के एक-एक देवता ने पांच अनुत्तर विमान के देव रूप में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में किसी ने की, किसी ने नहीं की, जिसने की, उसने चार अनुत्तर विमान के देव रूप में ५ की किन्तु सर्वार्थसिद्ध के देवरूप में नहीं की, वर्तमान में नहीं है और भविष्य में किसी के होंगी किसी के नहीं होंगी। जिसके होंगी उसके चार अनुत्तर विमान के देव रूप में पांच या दस होंगी और सर्वार्थसिद्ध के देव रूप में पांच होंगी। पहले देवलोक से नवग्रैवेयक तक के एक-एक देव ने संज्ञी मनुष्य रूप में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में नहीं है और भविष्य में नियमपूर्वक पांच, दस, पन्द्रह यावत् संख्यात, असंख्यात, अनन्त होंगी। .... चार अनुत्तर विमान के एक-एक देव ने संज्ञी मनुष्य और पांच अनुत्तर विमान के सिवाय शेष सभी स्थानों में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में केवल वैमानिक देव (पांच अनुत्तर विमान को छोड़कर) की अपेक्षा किसी के होंगी, किसी के नहीं होंगी, जिसके होंगी उसके ५, १०, १५, यावत् संख्यात होंगी। शेष स्थानों की अपेक्षा नहीं होंगी। चार अनुत्तर विमान के एक-एक देव ने स्वस्थान अर्थात् चार अनुत्तर विमान के देव रूप में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में किसी ने की, किसी ने नहीं की, जिसने की हैं, उसने-पांच की हैं, वर्तमान में पांच हैं और भविष्य में किसी के होंगी किसी के नहीं होंगी। जिसके होने पांच होंगी। चार अनुत्तर विमान के एक एक देव ने सर्वार्थसिद्ध के देवता के रूप में भावेन्द्रिया काल में नहीं की, वर्तमान में नहीं है और भविष्य में किसी के होंगी किसी के नहीं होंगी। जिसके होंगी उसके पांच होंगी। चार अनुत्तर विमान के एक-एक देव ने संज्ञी मनुष्य के रूप में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में नहीं है और भविष्य में नियम पूर्वक पांच दस यावत् संख्यात होंगी।
- सर्वार्थसिद्ध के एक-एक देव ने संज्ञी मनुष्य और अनुत्तर विमान के सिवाय शेष सभी स्थानों में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में नहीं होंगी। सर्वार्थसिद्ध के एक-एक देव ने चार अनुत्तर के देव रूप में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में किसी ने की, किसी ने नहीं की जिसने की उसने ५ की। वर्तमान में नहीं है और भविष्य में नहीं होंगी। सर्वार्थसिद्ध के एक-एक देव ने सर्वार्थसिद्ध के देव रूप में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में नहीं की, वर्तमान में पांच हैं और भविष्य में नहीं होंगी। सर्वार्थसिद्ध के एक एक देव ने संज्ञी मनुष्य रूप में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में नियम पूर्वक पांच होंगी। ___ एक-एक संज्ञी मनुष्य ने संज्ञी मनुष्य रूप में भावेन्द्रियां अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में पांच हैं और भविष्य में किसी के होंगी, किसी के नहीं होंगी, जिसके होंगी उसके ५, १०, १५ यावत् संख्यात,
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