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प्रज्ञापना सूत्र
णत्थि, केवइया बद्धेल्लगा? गोयमा! संखिज्जा, केवइया पुरेक्खडा? गोयमा! णत्थि॥४५९॥ ___ भावार्थ - इस प्रकार ये द्रव्येन्द्रियों के विषय में कथित ही चार गम यहाँ समझने चाहिए। विशेषता यह है - तृतीय गम (मनुष्य सम्बन्धी अभिलाप) में जिसकी जितनी भावेन्द्रियाँ हों, उनके उतनी भावेन्द्रियाँ पुरस्कृत में समझनी चाहिए। चतुर्थ गम (देवसम्बन्धी अभिलाप) में जिस प्रकार सर्वार्थसिद्ध की सर्वार्थसिद्धत्व के रूप में कितनी भावेन्द्रियाँ अतीत हुई हैं ? 'नहीं हुई हैं।' बद्ध भावेन्द्रियाँ संख्यात हैं, पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ नहीं होंगी, यहाँ तक कहना चाहिए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में द्रव्येन्द्रियों की तरह भावेन्द्रियों का कथन किया गया है। जिस प्रकार द्रव्येन्द्रियों के विषय में नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव संबंधी ये चार गम (अभिलाप) कहे गए हैं उसी प्रकार यहाँ भी समझ लेना चाहिए। एक जीव में परस्पर और अनेक जीवों में परस्पर . अतीत, वर्तमान और भविष्य काल की भावेन्द्रियों का वर्णन इस प्रकार है - .
एक जीव में परस्पर की अपेक्षा नारकी के एक-एक नैरयिक ने नैरयिक के रूप में भावेन्द्रियाँ अतीतकाल में अनन्त की, वर्तमान में पांच हैं और भविष्य में किसी के होंगी, किसी के नहीं होंगी, जिसके होंगी, उसके पांच, दस, पन्द्रह यावत् संख्यात असंख्यात अनन्त होंगी। एक-एक नारकी के नैरयिक ने पांच अनुत्तर विमान और संज्ञी मनुष्य के सिवाय शेष सभी स्थानों में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में किसी के होंगी, किसी के नहीं होंगी, जिसके होंगी उसके एकेन्द्रिय में १, २, ३, बेइन्द्रिय में । २, ४, ६, तेइन्द्रिय में ३, ६, ९, चउरिन्द्रिय में ४, ८, १२ और पंचेन्द्रिय में ५, १०, १५ यावत् संख्यात असंख्यात अनन्त होंगी। एक-एक नारकी के नैरयिक ने संज्ञी मनुष्य रूप में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में नहीं हैं, भविष्य में नियमपूर्वक ५, १०, १५, यावत् संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होंगी। एक-एक नारकी के नैरयिक ने पांच अनुत्तर विमान के देव रूप में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में नहीं की, वर्तमान काल में नहीं हैं और भविष्य में किसी के होंगी और किसी के नहीं होंगी, . जिसके होंगी उसके चार अनुत्तर विमान के देवरूप में ५, १० और सर्वार्थसिद्ध के देव रूप में पांच होंगी। एक-एक भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय, संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय, सम्मूछिम मनुष्य नारकी की तरह कह देना चाहिए।
पहले देवलोक से लेकर नवग्रैवेयक तक के एक-एक देव ने पांच अनुत्तर विमान और संज्ञी मनुष्य को छोड़ कर शेष सभी स्थानों में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में स्वस्थान में पांच हैं, परस्थान में नहीं हैं, भविष्य में किसी के होंगी किसी के नहीं होंगी। जिसके होंगी उसके
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