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पन्द्रहवां इन्द्रिय पद-द्वितीय उद्देशक - अनेक जीवों में परस्पर की अपेक्षा
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की, वर्तमान में असंख्यात हैं और भविष्य में असंख्यात होंगी। चार अनुत्तर विमान के बहुत देवों ने सर्वार्थसिद्ध के देव रूप में भावेन्द्रियाँ अतीतकाल में नहीं की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में संख्यात होंगी। चार अनुत्तर विमान के बहुत देवों ने वैमानिक देव और संज्ञी मनुष्य के सिवाय शेष सभी स्थानों में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में नहीं होंगी। चार अनुत्तर विमान के बहुत देवों ने संज्ञी मनुष्य एवं पहले देवलोक से लेकर नवग्रैवेयक तक के देव रूप में भावेन्द्रियां अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में असंख्यात होंगी।
सर्वार्थसिद्ध के बहुत देवों ने स्वस्थान की अपेक्षा भावेन्द्रियाँ अतीत काल में नहीं की, वर्तमान में असंख्यात हैं, भविष्य में नहीं होंगी। सर्वार्थसिद्ध के बहुत देवों ने संज्ञी मनुष्य के सिवाय शेष सभी स्थानों में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में चार अनुत्तर विमान के देव रूप में संख्यात की, शेष स्थानों की अपेक्षा अनन्त की, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में नहीं होंगी। सर्वार्थसिद्ध के बहुत देवों ने संज्ञी मनुष्य रूप में भावेन्द्रियाँ अतीत काल में अनन्त की, वर्तमान में नहीं है और भविष्य में असंख्यात होंगी।
द्रव्येन्द्रिय एवं भावेन्द्रिय से सम्बन्धित कुछ तथ्य -
१. द्रव्येन्द्रियाँ आठ एवं भावेन्द्रियाँ पांच ही हैं इसका कारण-दो आंख आदि बाह्य साधन हैं। अन्दर में शक्ति रूप साधन (उपकरण) तो एक ही है। इसके खराब होने पर तो सुना देखा ही नहीं जा सकता है क्योंकि एक कान की शक्ति नाश हो जाने पर दोनों कान से बहरा हो जाता है। यदि शक्ति पर आवरण आ गया हो तो वह तो दूर भी हो सकता है जैसे मोतियाबिन्द का ऑपरेशन हो सकता है। बेटरी से चलने वाली लाइट के खराब हो जाने पर उसमें फेर बदल किया जा सकता है परन्तु पावर हाऊस में खराबी हो जाने पर तो पूरे लाइट में खराबी हो जाती है।
२. भारण्ड पक्षी के भी आठ द्रव्येन्द्रियाँ ही समझना चाहिये। क्योंकि तिर्यंच पंचेन्द्रिय में आठ द्रव्येन्द्रियां ही बताई है। यदि आठ से अधिक भी कहीं बताई हो तो भी वास्तविक द्रव्येन्द्रियाँ तो आठ ही समझना, अधिक को विकृति समझना चाहिये, इसी प्रकार अधिक इन्द्रियों वाले मनुष्यों में भी समझना चाहिये।
३. एकेन्द्रिय में एक भावेन्द्रिय ही बताई है, अतः टीकाकार जो बकुल आदि वृक्षों के पांच भावेन्द्रियां कहते हैं वह आगम से विपरीत है। अन्य ४ स्थावरों की अपेक्षा प्रत्येक शरीरी वनस्पतिकाय में आहार आदि संज्ञाएं स्पष्ट होने से उन्हें यांत्रिक साधनों से नापा जा सकता है।
४. वनस्पतिकाय के बद्धलग द्रव्येन्द्रिय.असंख्याता हैं। भाव इन्द्रियाँ अनन्त बताई गई हैं। एक निगोद वर्ती जीवों के अनन्त जीवों के एक ही औदारिक शरीर होने से द्रव्येन्द्रिय तो एक समझना किन्तु उनके तेजस कार्मण शरीर स्वतंत्र होने से सब जीवों के अलग अलग रूप की अपेक्षा से भावेन्द्रियाँ बताई गई है।
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