________________
८३
पांचवां विशेष पद - असुरकुमार आदि देवों के पर्याय
mmmmmmmm...... असुरकुमार आदि देवों के पर्याय असुरकुमाराणं भंते! केवइया पजवा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता पजवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! असुरकुमारों के कितने पर्याय कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! असुरकुमारों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं। से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ-'असुरकुमाराणं अणंता पजवा पण्णत्ता।'
गोयमा! असुरकुमारे असुरकुमारस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए चउट्ठाणवडिए, कालवण्णपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए, एवं णीलवण्णपजवेहिं लोहियवण्णपजवेहिं हालिहवण्णपजवेहिं सुक्किलवण्णपजवेहि, सुब्भिगंधपजवेहिं दुब्भिगंधपजवेहिं, तित्तरसपजवेहिं कडुयरसपज्जवेहिं कसायरसपजवेहिं अंबिलरसपजवेहिं महुररसपज्जवेहिं, कक्खडफासपज्जवेहिं मउयफासपजवेहि गरुयफासपजवेहिं लहुयफासपजवेहिं सीयफासपजवेहिं उसिणफासपजवेहिं णिद्धफासपज्जवेहिं लुक्खफासपजवेहिं।
कठिन शब्दार्थ - चउट्ठाणवडिए - चतुःस्थानपतित।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि 'असुरकुमारों के पर्याय अनन्त हैं ?'
उत्तर - हे गौतम! एक असुरकुमार दूसरे असुरकुमार से-द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, किन्तु अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, कृष्ण (काले) वर्ण पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, इसी प्रकार नीलवर्णपर्यायों, रक्त (लोहित) वर्ण पर्यायों, हारिद्रवर्ण-पर्यायों, शुक्लवर्ण-पर्यायों की अपेक्षा से तथा सुगन्ध और दुर्गन्ध के पर्यायों की अपेक्षा से, तिक्त (तीखा) रस पर्यायों, कटुरस-पर्यायों, काषायरस-पर्यायों, आम्लरस-पर्यायों एवं मधु रस-पर्यायों की अपेक्षा से तथा कर्कशस्पर्श-पर्यायों, मृदुस्पर्श-पर्यायों, गुरुस्पर्श पर्यायों, लघुस्पर्श-पर्यायों, शीतस्पर्श-पर्यायों, उष्णस्पर्श-पर्यायों, स्निग्धस्पर्श-पर्यायों और रूक्षस्पर्श पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित हीनाधिक है।
आभिणिबोहिय णाण पनवेहिं सुर्यणाण पजवेहिं ओहिणाण पजवेहिं, मइअण्णाण पजवेहिं सुयअण्णाण पजवेहिं विभंगणाण पज्जवेहि, चक्खुदंसण पजवेहि अचक्खुदंसण पजवेहिं ओहिदसण पजवेहिं छट्ठाणवडिए,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org